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________________ १६६ || विवेक पर निर्भर करता है कि हम क्या करें ? श पहला पक्ष के आधार पर छांछ व दही को उष्ण करके दो दलवाले अनाज मिलाकर बनाई गई कढ़ी, बेसन आदि खाने में दोष नहीं है। मूल श्लोक इसप्रकार है ला - का पु रु pm F ष उ त्त रा र्द्ध " आम गोरस सम्पृक्त, द्विदलादिषु जन्वतः । दृष्टाः केवलिभिः सूक्ष्मस्तस्मातानिविवर्जयत् । । इस विचारधारा वाले व्यक्ति आम का अर्थ सच्चे गोरस से सम्पृक्त (मिले हुए) अन्न को खाना ही द्विदल अभक्ष्य मानते हैं। जो भी हो पर इससे इतना तो सिद्ध हो ही गया कि कच्चे दही छांछ में दो दलवाले अन्न के मिश्रण से सजीवों की उत्पत्ति होती है। अब प्रश्न केवल कच्चे या उष्ण किए हुए दही, छांछ का रहा, सो इसके लिए विवरणाचार का निम्नांकित आगम प्रमाण प्रस्तुत है। जो इस अभक्ष्य भक्षण के दोष से बचने के लिए पर्याप्त है। मूल श्लोक इसप्रकार है - आंमेन पक्केन च गो रसेन, पुद्गलादि युक्त द्विदलं तु कार्य । जिहादितीस्यात्त्रसजीवराशि, सम्मूर्छिमानश्यतिनामचित्रं ।। ६ ।। अर्थात् कच्चे व पके हुए दोनों प्रकार के गोरस में दोदल वाले अनाज के मिश्रण में मुँह की लार मिलते ही त्रसजीवों की उत्पत्ति हो जाती है; अतः इनका खाना सर्वथा वर्ज्य है । शंका- अब विचारणीय बात केवल यह है कि जब दोनों तरह के प्रमाण मिलते हैं तो दही व छाछ को गर्म करके खाने में क्या हानि है ? समाधान - सबसे बड़ी हानि यह है कि प्रश्न में द्विदल खाने के प्रति अनुराग झलकता है, अन्यथा मैं १. पण्डित आशाधरजी कृत सागारधर्मामृत २. विवरणाचार, श्लोक ६ ती र्थं क र वि म ल ना थ पर्व १२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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