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________________ दिव्यध्वनि में न केवल उन्हीं भव्य श्रोताओं के समाधान हुए, परम्परागत आजतक वह त्रैकालिकसत्य उपदेश चलता आ रहा है, जिसे आगामी काल में अनेक आचार्यों ने लिपिबद्ध भी कर दिया, जो इसप्रकार है अभक्ष्य अथवा अखाद्य पदार्थों का स्पष्टीकरण करते हुए कहा गया कि - जिन पदार्थों के खाने से त्रस जीवों का घात होता हो या बहुत स्थावर जीवों का घात होता हो तथा जो पदार्थ भले पुरुषों के सेवन करने योग्य न हों या नशा कारक अथवा अस्वास्थ्यकर हों, वे सब अभक्ष्य हैं। इन अभक्ष्यों को पाँच भागों | में बांटा जाता है - १. त्रसघात, २. बहुघात, ३. अनुपसेव्य, ४. नशाकारक, ५. अनिष्ट। १. सघात - जिन पदार्थों के खाने से त्रसजीवों का घात होता हो, उन्हें त्रसघात अभक्ष्य कहते हैं, पंच-उदुम्बर फलों में अनेक त्रस-जीव पाये जाते हैं, अत: ये त्रसघात अभक्ष्य हैं, खाने योग्य नहीं हैं। २. बहुघात - जिन पदार्थों के खाने से बहुत (अनंत) स्थावर जीवों का घात होता है, उन्हें बहुघात अभक्ष्य कहते हैं। समस्त कन्दमूलों में अनंत स्थावर निगोदिया जीव रहते हैं। इनके खाने से अनंत जीवों का घात होता है, अत: ये खाने योग्य नहीं हैं। ३. अनुपसेव्य - जिनका सेवन उत्तम पुरुष बुरा समझें वे लोकनिंद्य पदार्थ अनुपसेव्य हैं। जैसे - लार, मल, मूत्र आदि पदार्थ । लोकनिंद्य होने से इनका सेवन तीव्र राग के बिना संभव नहीं है, अत: ये अभक्ष्य हैं। ४. नशाकारक - जो वस्तुएँ नशा उत्पन्न करती हैं, मादक होती हैं, उन्हें नशाकारक अभक्ष्य कहते हैं। जैसे शराब, अफीम, भंग, गांजा, तम्बाकू आदि। ५. अनिष्ट - जो वस्तुएँ स्वास्थ्य के हानिकारक हों, वे भी अभक्ष्य हैं; क्योंकि हानिकर वस्तुओं का || उपभोग भी तीव्र राग के बिना संभव नहीं हैं; अत: वे पदार्थ भी अभक्ष्य हैं, खाने योग्य नहीं हैं। जिनागम में २२ अभक्ष्य पदार्थों को विशेष नामोल्लेखपूर्वक त्यागने की प्रेरणा दी गई है; क्योंकि उनके सेवन से अनंत त्रसजीवों की हिंसा है। वे इसप्रकार हैं - जादा .
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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