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बीतने के बाद जब उनकी आयु छह माह शेष रह गई, तब भरतक्षेत्र के तीर्थंकर के अवतार के रूप में अन्य तीर्थंकरों की भांति ही इनकी भी तैयारियाँ होने लगीं।
भरतक्षेत्र की कम्पिला नगरी के महाराजा कृतवर्मा, जिन्हें तीर्थंकर विमलनाथ के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त होनेवाला है, वे तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के ही वंशज थे। उनकी महारानी का नाम जयश्याम था । ज्येष्ठ कृष्णा दशमी से ६ माह पूर्व से कुबेर ने रत्नवृष्टि प्रारंभ करके उस नगरी एवं तेरहवें तीर्थंकर के माता-पिता का सम्मान किया।
छह माह पश्चात् ज्येष्ठ कृष्णा दशमी के दिन तीर्थंकर होनेवाले विमलनाथ का जीव इन्द्र पर्याय से चयकर माता जयश्यामा के गर्भ में अवतरित हुआ। माता ने १६ स्वप्न देखे, प्रात: पति से उनका फल जानकर अति आनन्दित हुई। देवों ने प्रभु का गर्भकल्याणक महोत्सव मनाया। ____ तीर्थंकर के पिता नियम से मुक्तिगामी होते हैं; अत: देवों ने उनके सौभाग्य की स्तुति की। नौ माह तक सर्वत्र हर्षोल्लास का वातावरण रहा । अन्य सभी तीर्थंकरों के समान गर्भ-जन्म महोत्सव के सभी मंगलाचार देव-देवियों और सौभाग्यवान नर-नारियों के द्वारा किये गये। बालक विमलनाथ द्वितीय के चन्द्रमा के भांति वृद्धिंगत होने लगे। ___ भगवान विमलनाथ की आयु साठ लाख वर्ष की थी। बचपन में उनकी कलायें अद्भुत थीं। पन्द्रह हजार वर्ष कब/कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। पुरानी कहावत है सुख में सागरों की लम्बी आयु भी पल भर की तरह बीत जाती है और दुःख का एक-एक क्षण वर्षों जैसा लगता है।
माघ शुक्ला चतुर्थी को अपने जन्मदिन पर महाराजा विमलनाथ प्रात: वनक्रीड़ा को गये थे। एक तालाब के किनारे अतिरम्य शान्त वातावरण था। तालाब में खिले कमल-पत्रों-पुष्पों पर मोती के समान चमकती ओस बूंदें अपनी सप्तरंगी छटा बिखेर रही थीं। पूर्व में सूर्योदय की गर्मी से वे बूंदे पलभर में प्रलय में को प्राप्त हो गई हैं। उनकी क्षणभंगुरता देख महाराजा विमल को वैराग्य हो गया।