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________________ १५८ श ला का पु रु ष pm F F 10 उ त्त रा र्द्ध (१२ हे विमलनाथ! तुम निर्मल हो, कोई भी कर्मकलंक नहीं । हो वीतराग सर्वज्ञदेव, पर का किंचित् कर्तृत्व नहीं ।। निर्दोष मूलगुण चर्या से, मुनिमार्ग सिखाया है तुमने । द्वादशांग जिनवाणी से, शिवमार्ग बताया है तुमने ।। हे विमलनाथ भगवान ! आप द्रव्य नोकर्म एवं भावकर्म से रहित अत्यंत निर्मल हैं; अत: आपका विमलनाथ नाम पूर्ण सार्थक हैं। हे प्रभो ! आप वीतरागी सर्वज्ञ हैं, यद्यपि आप किसी भी परद्रव्य या परभाव के कर्ता-धर्ता नहीं हैं, फिर आप जगत के हित में निमित्त होने से हितंकर भी हैं। अपनी साधना | के काल में आपके निर्दोष मूलगुणों के आदर्श से जगत में सच्चा मुनि मार्ग अपनाया है तथा अपनी दिव्यध्वनिरूप जिनवाणी से मोक्षमार्ग का प्रवर्तन भी किया है। हे प्रभो ! धन्य हैं आप। आपके गुणगान और जीवन-चरित्र के लिखने-पढ़ने से हमारा जीवन भी धन्य हो गया है।" ती sm do वर्तमान चौबीसी के तेरहवें तीर्थंकर के पूर्वभवों का सामान्य परिचय कराते हुए जैन भूगोल के परिप्रेक्ष्य वि में आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में कहते हैं कि मध्यलोक में मनुष्य क्षेत्र और मोक्ष प्राप्त करने की भूमि ढाईद्वीप है । एक जम्बू द्वीप, एक धातकी खण्ड द्वीप और आधा पुष्करवर द्वीप । उसमें से दूसरे धातकीखण्ड द्वीप | के पश्चिम भाग में विदेह क्षेत्र की सीतोदा नदी के किनारे 'रम्यक' नामक सुन्दर देश है । तीर्थंकर विमलनाथ नाम का जीव पूर्वभव में रम्यक नगरी का राजा था। उसका नाम पद्मसेन था। नगरी | में एक दिन सर्वगुप्त नाम के केवली भगवान का शुभागमन हुआ । सूचनास्वरूप केवली के अति अतिशय | से नगर का उद्यान एकदम फल-फूलों से खिल गया । चारों ओर शान्ति का वातावरण छा गया। राजा म ल ना थ पर्व १२
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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