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________________ REEFFFFy कर ली। आत्मसाधना द्वारा केवलज्ञान प्रकट किया और गजपंथा सिद्धक्षेत्र से उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। अरे, देखो तो सही संसार की विचित्रता ! दो भाइयों ने पुण्य द्वारा प्राप्त तीन खण्ड की विभूति का एकसाथ उपभोग किया; परन्तु एक तो ऊर्ध्वपरिणाम द्वारा उस पुण्य विभूति को छोड़कर मोक्ष में गये और दूसरा अधोपरिणाम द्वारा उस पुण्यविभूति को छोड़कर सातवें नरक में गया । इसलिए अपना हित चाहनेवाले बुद्धिमान जीवों को विषयों की वासना तथा पापभाव छोड़कर मोक्षसुख हेतु धर्म का सेवन करना चाहिए। तीर्थंकर का योग प्राप्त होने पर भी हृदय से विषयभोगों की शल्य नहीं छूटी तो वह त्रिखण्डाधिपति भी भयंकर दुर्गति को प्राप्त हुआ। इसलिए हे जीव ! तू जागृत हो, धर्म का सुअवसर प्राप्त करके विषयों में मत अटक; आत्मा का वीतरागी सुख विषयरहित है, उसका विश्वास करके उसकी साधना करना। . जो व्यक्ति राष्ट्रसेवा एवं समाजसेवा के नाम पर ट्रस्ट बनाकर अपने काले धन को सफेद करते हैं और उस धन से एक पंथ अनेक काज साधते हैं, उनकी तो यहाँ बात ही नहीं है; उनके वे भाव तो स्पष्टरूप से अप्रशस्त भाव ही हैं। सचमुच देखा जाय तो वे तो अपनी रोटियाँ सेंकने में ही लगे हैं। वे स्वयं ही समझते होंगे कि सचमुच वे कितने धर्मात्मा हैं; पर जो व्यक्ति अपने धन का सदुपयोग सचमुच लोक कल्याण की भावना से जनहित में ही करते हैं, उसके पीछे जिनका यश-प्रतिष्ठा कराने का कतई/कोई अभिप्राय नहीं होता, उन्हें भी एकबार आत्मनिरीक्षण तो करना ही चाहिए कि उनके इन कार्यों में कितनी धर्मभावना है, कितनी शुभभावना है और कितना अशुभभाव वर्तता है। आँख मींचकर अपने को धर्मात्मा, दानवीर आदि माने बैठे रहना कोई बुद्धिमानी नहीं है। - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ-२०९ ११
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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