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________________ FREE F १५४ | वहाँ प्रभु के दर्शन करके तथा उपदेश सुनकर संसार से विरक्त होकर प्रभु चरणों में मुनि दीक्षा ली और प्रभु | के गणधर होकर मोक्ष प्राप्त किया। • चम्पापुरी की राजकुमारी रोहिणी जो हस्तिनापुरी के राजपुत्र अशोक की रानी थी, वे दोनों वासुपूज्य प्रभु के दर्शन करने चम्पापुर आये; वहाँ महाराज अशोक तो भगवान का उपदेश सुनकर मुनि हो गये और प्रभु के गणधर बने । रोहिणी भी आर्यिका बनकर अच्युत स्वर्ग में देवरूप से उत्पन्न हुई। • चम्पापुर में धर्मघोष मुनि ने एक महीने के उपवास किए थे; पारणा के समय उन पर उपसर्ग आया उन्होंने उस उपसर्ग को जीतकर केवलज्ञान प्राप्त करके वहीं से मोक्ष प्राप्त किया। पाँचों पाण्डवों का ज्येष्ठ भ्राता कर्ण चम्पापुरी का राजा था। जिसके शील के प्रताप से घड़े में बन्द नाग हार बन गया था, वह सती सोमा यहीं हुई है। • नि:कांक्षित गुण में प्रसिद्ध सती अनन्तमती भी यहीं हुई हैं। • कुष्ठरोगी से वैरागी बने राजा श्रीपाल भी यहीं हुए हैं। • वर्तमान शासन नायक तीर्थंकर भगवान महावीर का समवशरण चम्पापुरी में भी आया था। ये सब भी इसी चम्पानगरी के रत्न थे। जिनके गुणों की सौरभ से आज भी चम्पानगरी गौरवान्वित होती है। आज भी हजारों धर्मात्मा चम्पापुरी व मन्दारगिरि की वन्दना कर अपने को धन्य अनुभव करते हैं। वासुपूज्य भगवान के समय में हुए द्वितीय वासुदेव (नारायण)-द्विपृष्ठ, बलदेव या बलभद्र-अचल और | प्रतिवासुदेव (प्रतिनारायण)-तारक का प्रेरणाप्रद चारित्र - ग्यारहवें श्रेयांसनाथ तीर्थंकर को निर्वाणप्राप्ति के पश्चात् उनके शासन में प्रथम वासुदेव एवं बलदेव हुए; तत्पश्चात् वासुपूज्य तीर्थंकर के समय में द्वितीय वासुदेव द्वितीय बलभद्र एवं प्रतिवासुदेव हुए; उनकी कथा भव्य जीवों को जीव के परिणाम की विचित्रता बतला कर संसार के प्रति वैराग्य जागृत कराती है। IFE 19 44
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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