________________
FREE
F
IFE 19
|| श्रुतकेवली थे; ३९ हजार २०० उपाध्याय थे; १० हजार विक्रिया ऋद्धिधारी तथा ४ हजार २०० वादी थे तथा || ५ हजार ४०० अवधिज्ञानी और मन:पर्ययज्ञानी मुनिवर थे।
६ हजार केवलज्ञानी-अरहंत परमात्मा भी गगन-मण्डल में आपके साथ ही धर्मसभा को सुशोभित कर || रहे थे। अहा! एक साथ हजारों अरहंत देवों के समूह सहित आप तीर्थंकर के रूप में अद्भुत शोभायमान होते थे। आपके श्री मण्डप में कुल ७२ हजार मुनिवर और १ लाख ६ हजार आर्यिकाएँ थीं। आपका वह वैभव देखकर अनेक जीवों का मान तथा मिथ्यात्व मिट जाता था। और वे सम्यग्दर्शन प्राप्त करते थे। ऐसे धर्मप्राप्त दो लाख श्रावक और चार लाख श्राविकायें समवशरण में आपकी उपासना कर रहे थे; देवों का | तो कोई पार नहीं था और सिंह, सर्प, शशक, हिरण आदि तिर्यंचों की संख्या भी बड़ी विशाल थी। | वासुपूज्य देव! आपके चतुर्विध संघ से मोक्षमार्ग की सरिता प्रवाहित हो रही थी। इसप्रकार देश-देश में विचरण करके धर्मचक्र का प्रवर्तन करते-करते जब एक हजार वर्ष की आयु शेष रही, तब आप पुन: चम्पापुरी नगरी में पधारे और अन्तिम मास में रजतमाला नदी के किनारे मंदारगिरि के मनोहर उद्यान में स्थिर हुए। आपका विहार एवं वाणी रुक गये और भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को सायंकाल सम्पूर्ण योग निरोध करके चौरानवे मुनिवरों सहित आप सिद्धालय में पधार गये।
देवों ने आपका निर्वाण महोत्सव मनाया। आपका पंचकल्याणक मनाने हेतु इन्द्रादिदेव इस चम्पापुरी नगरी में पाँचवीं बार आये। आपके पाँचों कल्याणक से 'चम्पा' धन्य-धन्य हुई और साधक भी आपकी उपासना से धन्य हुए। इस चम्पापुरी नगरी को अनेक सौभाग्य प्राप्त हुए हैं, जो इसप्रकार हैं -
• उपसर्ग विजेता और मोक्षगामी महात्मा सेठ सुदर्शन भी इस चम्पापुरी नगरी में ही हुए।
• मिथिलापुरी के राजा पद्मरथ दृढ़ सम्यक्त्वी थे; उन्होंने चम्पापुरी में विराजमान वासुपूज्य तीर्थंकर की महिमा सुनी और तत्काल दर्शन करने चल पड़े। मार्ग में भिन्न-भिन्न प्रतिकूलताओं द्वारा देव ने उनकी भक्ति || पर्व की परीक्षा की; परन्तु पद्मरथ राजा डिगे नहीं और अन्त में चम्पापुरी में वासुपूज्य प्रभु के चरणों में पहुँचे। ॥ ११