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________________ १५१ परम वैराग्य का अवसर बना दिया; तुरन्त जिनदीक्षा लेने का उन्होंने अटल निर्णय किया। लोग आश्चर्य | में पड़ गये कि 'अरे, अचानक यह कैसा महापरिवर्तन हुआ?' माता-पिता भी विस्मित हो गये। वासुपूज्य की वैराग्य-परिणति को वे जानते ही थे और यह भी जानते थे कि वे तीर्थंकर होने के लिए अवतरित हुए | हैं। इसलिए मुनिमार्ग में जाते हुए आपको रोकने की उन्होंने कोई चेष्टा नहीं की। 'हमारा पुत्र अब परमात्मा | बनने के लिए मोक्षमार्ग में आगे बढ़ रहा है' - ऐसा समझकर वे अनुमोदना सहित मौन रहे; उन्होंने न खेद किया, न हर्ष । वासुपूज्य तो चैतन्यरस में निमग्न होकर वैराग्य भावनाओं का चिन्तवन कर रहे थे। उसीसमय ब्रह्मलोक से लौकान्तिक देव चम्पापुरी में आये और उनके वैराग्य की प्रशंसा करके स्तुति की। उसीसमय स्वर्ग के देव 'रत्नमाला' नामक पालकी लेकर दीक्षाकल्याणक मनाने के लिए आ पहुँचे और दीक्षा प्रसंग का अभिषेक, शृंगार आदि मंगलविधि की। विरागी वासुपूज्य रत्नमाला' पालकी में आरूढ़ होकर 'रत्नत्रय' की माला पहनने के लिए वन में चल दिए। मनोहर वन में जाकर उन्होंने सर्वसंग का परित्याग किया, मुकुट छोड़ा, हार छोड़े, वस्त्र भी छोड़े और सिर के केशों को भी स्वहस्त से उखाड़ दिया। आपकी निर्विकार शान्त मुद्रा देखकर हजारों-लाखों जीवों को निर्विकार चैतन्यसुख की प्रतीति हो गयी। 'नमः सिद्धेभ्यः' ऐसे उच्चारणपूर्वक आत्मध्यान में लीन हुए। शुद्धोपयोग से निज परमतत्त्व की अनुभूति में एकाग्र हुए। उसीसमय प्रत्याख्यान कषाय दूर हो गई; सातवाँ गुणस्थान तथा मन:पर्ययज्ञान प्रकट हुआ, अनेक लब्धियाँ भी प्रकट हुईं। सैकड़ों राजाओं ने तथा अन्य कितने ही मुमुक्षु जीवों ने भी उनके साथ ही संसार छोड़कर संयमदशा अंगीकार की और धर्म का महान उद्योत हुआ। दो उपवास के पश्चात् फाल्गुन शुक्ला प्रतिपदा के दिन वे नगरी में पधारे और 'सुन्दर' नाम के राजा ने आपको प्रथम आहादान देकर सातिशय पुण्यार्जन किया। उससमय देवों ने भी आश्चर्यकारी मंगल वाद्य तथा पुष्पवृष्टि आदि द्वारा अपना हर्ष प्रकट किया। FREEFFFFy
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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