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________________ EFFERIFF TO १४२|| शरण में आने पर जब लौकिक कामनायें स्वत: क्षीण ही हो जाती हैं, तो फिर उनकी पूर्ति का प्रश्न ही || || कहाँ रह जाता है ? यह बात जुदी है कि पंचपरमेष्ठी के निष्काम उपासकों को भी सातिशय पुण्य बंध होने से लौकिक अनुकूलतायें भी स्वत: मिलती देखी जाती हैं तथा वे उन अनुकूलताओं को एवं सुख-सुविधाओं को स्वीकार करते हुए उनका उपभोग करते हुए भी देखे जाते हैं, किन्तु सहज प्राप्त उपलब्धियों को स्वीकार करना अलग बात है और उनकी कामना करना अलग बात । दोनों में जमीन-आसमान का अन्तर है। आतिथ्य-सत्कार में नाना मिष्ठान्नों का प्राप्त होना और उन्हें सहज स्वीकार कर लेना जुदी बात है और उनकी याचना करना जुदी बात है। दोनों को एक नजर से नहीं देखा जा सकता। ज्ञानी अपनी वर्तमान पुरुषार्थ की कमी के कारण पुण्योदय से प्राप्त अनुकूलता के साथ समझौता तो सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं; किन्तु वे पुण्य की या पुण्य के फल की भीख भगवान से नहीं माँगते। मंत्र की आराधना के काल में संयोगवशात् जब किसी को लौकिक सुख-सामग्री या समृद्धि प्राप्त हो जाती है तो दोनों का समकाल होने से ऐसी भ्रान्ति होना स्वाभाविक है कि यह समृद्धि इस मंत्र के प्रसाद से हुई है। बिल्ली का झपटना और स्वत: जीण-शीर्ण छींके का टूटना कभी-कभी एक काल में हो जाता है, तब भी यही कहा जाता है कि बिल्ली ने छींका तोड़ दिया। बिल्ली रोज झपटती थी और छींका आजतक नहीं टूटा । यदि उसके झपटने से ही छींका टूटा है तो कलतक क्यों नहीं टूटा ? इसीप्रकार वही मंत्र वर्षों से पढ़ते आ रहे हैं और आजतक कुछ लौकिक लाभ नहीं हुआ। यदि उसी से होता था तो अबतक तो कभी का हो जाना चाहिए था। __ हाँ, यह बात अवश्य है कि मंत्राराधना के काल में शुभोपयोग होने से सातिशय पुण्यबंध होता है, उस पुण्य के उदयकाल में धर्माचरण के लिए लौकिक अनुकूलतायें सहज ही प्राप्त हो जाती हैं। ___णमोकार मंत्र की आराधना का अन्तिम फल तो अपवर्ग की उपलब्धि ही है; किन्तु इसकी आराधना | | के मार्ग में बहुत सारी लौकिक उपलब्धियाँ भी प्राप्त होती रहती हैं, जो समय-समय पर उसकी महिमा || १०
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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