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जाकर आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए किया जाता है और किया जाना चाहिए। भौतिक अनुकूलता की | वांछा से इसका उपयोग करना कौआ को उड़ाने के लिए चिन्तामणि रत्न को फेंक देने के समान है। | मोह-राग-द्वेष के नाश करने के लिए यह परमौषधि है, विषय-वासनारूपी विष को उतारने के लिए यह नागदमनी जड़ी-बूटी है, भवसागर से पार उतारने के लिए यह अद्भुत अपूर्व जहाज है। अधिक क्या कहें, निजात्मा के ध्यान से च्युत होने पर एकमात्र शरणभूत यही महामंत्र है। इसमें जिन्हें नमस्कार किया | गया है, वे पंच परमेष्ठी ही हैं। विषय-वासनाओं से विरक्त ज्ञानी धर्मात्माओं को शरणभूत एकमात्र यही | महामंत्र तो है, जिसमें निष्कामभाव से आध्यात्मिक चरमोपलब्धि के प्रति नतमस्तक हो गया है।
भले ही गाथाबद्ध महामंत्र की शाब्दिक रचना किसी काल-विशेष में किसी व्यक्तिविशेष के द्वारा की गई हो, तथापि यह महामंत्र अपनी विषयवस्तु एवं भावना की दृष्टि से सार्वकालिक अनादि-अनन्त एवं सार्वभौमिक है; क्योंकि इसमें किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार न करके पंच-परमपदों को नमस्कार किया गया है। ये परमपद सार्वकालिक हैं; अतः यह महामंत्र भी सार्वकालिक ही है। सभी के लिए अत्यन्त उपयोगी होने से यह सार्वभौमिक भी है।
दैवयोग से यह भी एक सहज संयोग ही समझिए कि इस महामंत्र की शाब्दिक संरचना भी इसप्रकार की संगठित हुई है कि जिसमें द्रव्यश्रुत के सभी वर्ण (अक्षर) आ गये हैं।
प्राकृतभाषा के नियमानुसार तो इस महामंत्र में इस भाषा के चारों मूल स्वर (अ, इ, उ, और ए) तथा बारह व्यंजन (ज, झ, ण, त, त, द, ध, र, ल, व, स और ह) निहित हैं ही, संस्कृत वर्णमाला के अनुसार भी “अहँताणं" के “अहँ" पद में वर्णमाला के प्रारंभिक "अ" एवं अन्तिम वर्ण "ह" आ जाने से सम्पूर्ण वर्णमाला का प्रतिनिधित्व हो गया है।
इसके अतिरिक्त इस महामंत्र में पाँच पद एवं पाँचों पदों में पैंतीस अक्षर हैं। पहले - ‘णमो अरिहंताणं' | पद में ७, दूसरे - ‘णमो सिद्धाणं' में ५, तीसरे - ‘णमो आइरियाणं' में ७, चौथे - ‘णमो उवज्झायाणं' ||१०
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