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________________ राजा नलिन अत्यन्त हर्ष के साथ जिनेन्द्र के दर्शनार्थ दल-बल एवं परिवार सहित पधारे । दर्शन कर || एवं तत्त्वोपदेश सुनकर उन्हें हार्दिक प्रसन्नता हुई एवं उन्होंने अपने जीवन को धन्य माना। आत्मज्ञान तो उन्हें || था ही, जिनेन्द्रवाणी को सुनकर उन्हें वैराग्य भी हो गया। वे जिनचरणों में दीक्षा लेकर मुनि हो गये। द्वादशांग में से उनको ग्यारह अंग का ज्ञान हो गया और रत्नत्रय की शुद्धिपूर्वक सोलहकारण भावना भाते हुए विश्वकल्याणक की हेतुभूत वात्सल्यभावना भाने से उन्हें तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो गया। वे नलिन मुनिराज विशुद्ध चारित्र का पालन करते हुए आयु पूर्ण होने पर समाधिमरण करके सोलहवें स्वर्ग में इन्द्र हुए। वहाँ उनकी आयु बाईस सागर की थी। अनेक दिव्य देवियों तथा देवलोक के आश्चर्यकारी वैभव के बीच रहकर भी वे सम्यक्त्व के प्रताप से चैतन्य को कभी नहीं भूले । रागी होने पर भी उनकी चेतना राग से विरक्त रही। स्वर्ग के सुखों को भी वे अतीन्द्रिय सुख के समक्ष दुख ही मानते थे। धन्य है, उनका जीवन और धन्य है वह सम्यक्त्व की महिमा, जिसके रहते वे निरन्तर अतीन्द्रिय आनन्द का आंशिक स्वाद लेते रहे। वे वहाँ भी यह भावना भाते थे कि “वह धन्य घड़ी कब आयेगी, जब मैं वीतराग पद धारणकर आत्मा की अचिन्त्य महिमा का ध्यान कर परमात्मपद प्राप्त करूँगा।" अन्त में जब उनके स्वर्ग के दिव्यसुखों से मुक्त होकर मोक्ष की साधना हेतु मनुष्य लोक में आने के मात्र छह माह शेष रहे तो उनके स्वागत हेतु इन्द्र की आज्ञा से कुबेर द्वारा रानी सुनन्दा एवं राजा विष्णु के घर सारनाथ (काशी-बनारस) में १५ माह तक रत्नों की वर्षा की गई। गर्भ में आने के पूर्व सुनन्दा माता ने सोलह स्वप्न देखे, ९ माह और कुछ दिन पश्चात् फाल्गुन कृष्ण एकादशी के दिन तीर्थंकर का जीव माता के गर्भ से अवतरित हुआ। जन्मते ही सौधर्म इन्द्र सपरिवार ऐरावत हाथी पर बैठ गया। इन्द्राणी ने माता को मायामयी नींद में सुलाकर तथा मायामयी बालक उनकी गोद में रखकर बाल तीर्थंकर श्रेयांस को जन्माभिषेक करने सुमेरुपर्वत पर ले गया। जन्माभिषेक का मंगल महोत्सव मनाया और बालक को माता की गोद में देते हुए दो नेत्रों से दर्शन कर जब तृप्त नहीं हुआ तो ||१०
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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