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________________ CREFEF FF is कोई किसी का नाथ नहीं, फिर भी तुम नाथ कहाते हो। श्रेयस्कर कर्तृत्व नहीं, फिर भी श्रेयांस कहाते हो।। जिनवाणी का वक्तृत्व नहीं, पर मोक्षमार्ग दर्शाते हो। अरस अरूपी हो प्रभुवर! अमृत रसधार बहाते हो।। यद्यपि तुम न नाथ हो, है न श्रेय कर्तव्य। फिर भी श्रेयांसनाथ हो, यह व्यवहार वक्तव्य ।। भव्य जीवों के लिए आश्रय लेनेयोग्य तीर्थंकर भगवान श्रेयांसनाथ का मंगलमय चारित्र सब जीवों को श्रेयरूप हो। इस मंगल भावना के साथ श्रेयांसनाथ स्वामी का चरित्र लिखा जाता है। ____ तीर्थंकर श्रेयांसनाथ के कुछ प्रेरणाप्रद पूर्वभवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र महाराजा नलिन के विषय में बताते हैं कि महाराज नलिन जैनधर्म के प्रेमी तो थे ही, आत्मस्वरूप के ज्ञाता भी थे। संसार में रहकर भी जल में रहनेवाले कमल की भांति संसार से विरक्त थे। धर्म, अर्थ, काम, पुरुषार्थों के साथ मोक्षमार्ग का पुरुषार्थ भी उनके निरन्तर चल रहा था। राज्यवैभव में रहते हुए भी उनकी कोई प्रवृत्ति धर्म से विरुद्ध नहीं थी। उनके श्रावक काल का जीवन भी एक आदर्श श्रावक के समान उज्ज्वल था। __नलिनप्रभ पुष्कर द्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र में क्षेमपुरनगर के राजा थे। एक बार उसके राज-उद्यान में अनन्त जिनेन्द्र का शुभागमन हुआ। उनके पुण्यप्रताप के निमित्त से प्राकृतिक वातावरण आनन्ददायक हो गया। वनपाल ने आकर राजा को बधाई देते हुए हर्षपूर्वक भगवान अनन्तजिन के पदार्पण करने का समाचार सुनाया। + Rs No FEF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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