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________________ CREEFFFFy इसप्रकार करोड़ों वर्षों तक धर्मोपदेश देकर अरबों जीवों का मिथ्यात्व छुड़वाते हुए तथा सम्यक्त्वादि रत्नों की प्राप्ति कराते हुए तीर्थंकर शीतलनाथ सम्मेदशिखर पधारे। अब मुक्त होने में उनको केवल एक माह था, इसलिए उन्होंने सम्मेदशिखर की विद्युतवर टोंक पर स्थिरयोग धारण किया। विहार एवं वाणी रुक गई। पश्चात् अन्तिम शुक्लध्यानपूर्वक योग निरोध करके शेष कर्मों का क्षय करके प्रभु मुक्त हो गये। अश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन देवों ने निर्वाणकल्याणक का मंगल महोत्सव मनाया। इस अवसर पर अशरीरी सिद्धों का तथा उनके अतीन्द्रिय सुख का चिन्तन करके कितने ही जीवों ने सम्यग्दर्शन द्वारा अपने में वैसे ही सिद्धसुख का आस्वाद लिया और वे भी सिद्धपुर के पथिक बन गये। ॐ नमः । निश्चयत: धर्मध्यान आत्मा की अन्तर्मुखी प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में साधक अपने ज्ञानोपयोग को इन्द्रियों के विषयों व मन के विकल्पों से, पर-पदार्थों से एवं अपनी मलिन पर्यायों पर से हटाकर अखण्ड, अभेद, चिन्मात्र ज्योतिस्वरूप भगवान आत्मा पर केन्द्रित करता है, अपने ज्ञानोपयोग को आत्मा पर स्थिर करता है। TECEF वस्तुत: धर्मध्यान ज्ञानोपयोग की वह अवस्था है, जहाँ समस्त विकल्प शमित होकर एकमात्र आत्मानुभूति ही रह जाती है, विचार-श्रृंखला रुक जाती है, चंचल चित्तवृत्तियाँ निश्चल हो जाती हैं। अखण्ड आत्मानुभूति में ज्ञाता-ज्ञेय एवं ध्याता-ध्येय का भी विकल्प नहीं रहता। - इन भावों का फल क्या होगा, पृष्ठ-१४३
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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