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________________ CREEFFFFy १२९| सरागधर्म को न माने, मात्र सच्चे देव-शास्त्र-गुरु एवं वीतराग धर्म का ही पक्ष रखता हो, उसे पाक्षिक | कहते हैं। नैष्ठिक श्रावक :- जो श्रावक के बारह व्रतों एवं ग्यारह प्रतिमाओं का निरतिचार पालन करता है एवं न्यायपूर्वक आजीविका करता है, उसे नैष्ठिक श्रावक कहते हैं। साधक :- जो जीवन के अन्त में काय को कृष करने के लिए विषय-कषायों को क्रमशः कम करता हुआ आहार आदि सरिंभ को छोड़कर परम समाधि का साधन करता है, वह साधक श्रावक है।। आचार्य जिनसेन के पश्चात् आशाधरजी तथा अन्य विद्वान इन तीनों को ही आधार बनाकर श्रावकधर्म का प्रतिपादन करेंगे। उपर्युक्त तीनों प्रकारों में जिन्होंने ११ प्रतिमाओं और १२ व्रतों को श्रावकधर्म के निरूपण का आधार बनाया है, उनमें अधिकांश ने तो अष्ट मूलगुणों की चर्चा ही नहीं की और जिन्होंने प्रसंगवश की है, उन्होंने | व्रत-प्रतिमा के साथ जहाँ-जहाँ जैसा प्रसंग आया, वहाँ वैसी चर्चा कर दी। ___जिन आचार्यों ने श्रावक के मूलगुणों के वर्णन में अष्ट मूलगुणों की चर्चा नहीं की, उनकी दृष्टि में भी मद्य-मांस-मधु आदि प्रथम भूमिका में ही त्याज्य हैं, क्योंकि मूलगुण कहते ही उसे हैं, जिनके धारण बिना श्रावकपना ही संभव नहीं है। जो धर्मतत्त्व को स्वयं सुनता हो, जैनधर्म में पूर्ण श्रद्धा रखता हो तथा सदाचारी हो, उसे श्रावक कहते हैं। “प्रतिदिन जिनेन्द्रदेव के दर्शन करना, जल छानकर पीना और रात्रि में भोजन नहीं करना - ये तीन श्रावक के मुख्य बाह्यचिह्न हैं। __ जो श्रावक अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिदिन देव-शास्त्र-गुरु की पूजा करता है, सुपात्रों को दान देता || है, वह सम्यग्दृष्टि श्रावक मोक्षमार्ग में शीघ्र गमन करता है। 4E FREE EF,
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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