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________________ १२५ ही सुखी हुए हैं, फिर मैं अभी तक इस दल-दल में क्यों फंसा हूँ ? वस्तुत: विषय सामग्री का सुख सुख श है ही नहीं, यह तो दुःख का ही एक रूप है, मिठास लपेटी तलवार के समान है। आश्चर्य है कि सारा संसार इसमें सुख माने बैठा है । " इसप्रकार विचार करते हुए वे संसार - शरीर एवं भोगों से सर्वथा विरक्त हो गये । EEK 45 ला का पु रु ष उ त्त रा यहाँ ज्ञातव्य यह है कि भगवान शीतलनाथ ने पहले भी अनेक बार इन घटनाओं को देखा होगा; किन्तु | जब उनके वैराग्य का काल पका, वैराग्य की काललब्धि आई तो वे ही चिर-परिचित घटनायें उनके वैराग्य में निमित्त बन गईं । तात्पर्य यह है कि मोक्षमार्ग में निमित्त का इतना ही स्थान है। इसीलिए तो निमित्त को अकिंचित्कर कहा गया है। यदि निमित्त ही कर्ता होता तो क्या महाराज शीतलनाथ ने पहले कभी ओस बूँदों को नष्ट होते नहीं देखा होगा। जबकि वन विहार उनकी दैनिक चर्या थी । महाराजा शीतलनाथ का संसार अल्प रह गया था, उनकी काललब्धि का परिपाक हुआ और उन्हें र्द्ध वैराग्य हो गया, उन्होंने संकल्प किया कि “अब मैं मोह का सर्वथा नाश करके शुद्धात्मा के ध्यान द्वारा केवलज्ञान प्रगट कर सिद्धपद प्राप्त करूँगा । " ती र्थं क र महाराजा शीतलनाथ ऐसा विचार कर ही रहे थे कि उसीसमय परम विशुद्धि से उनको जातिस्मरण ज्ञान हुआ कि "मैं पूर्वभव में पद्मगुल्म राजा था। उससमय भी ऋतु परिवर्तन देखकर ही मेरा चित्त संसार से विरक्त हुआ था और इससमय भी वे ओसबिन्दु ही मेरे वैराग्य के कारण बने हैं।" इसप्रकार वस्तु के यथार्थ शी स्वरूप का विचार कर उन्होंने विवेकियों के द्वारा छोड़ने योग्य अपना सारा साम्राज्य पुत्र को दे दिया । त ल ना थ पर्व इसप्रकार प्रभु की दीक्षा का अवसर जानकर ब्रह्मलोक से लौकान्तिक देव आये और प्रभु की स्तुति करके उनके वैराग्य की प्रशंसा की, अनुमोदना की । उसीसमय इन्द्रगण शुप्रभा नामक पालकी लेकर आ गये । उसमें आरूढ़ होकर विरागी प्रभु ने संसार से मोह छोड़कर, अपनापन त्यागकर, मोक्ष साधने के लिए वन की ओर विहार किया। माघ कृष्णा द्वादशी (अपनी जन्म तिथि) के दिन ही शीतलनाथ प्रभु ने स्वयंबुद्ध होकर दीक्षा धारण कर ली ।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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