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________________ CREFFFFFF TV फाल्गुन मास में वसंत ऋतु के सुखद वातावरण का आनन्द लेते हुए जब वह काम की पीड़ा से पीड़ित हुआ | तो उसने संकल्प किया कि जिसमें सारा जगत सुख की कल्पना करता है, मैं उस दुःखद काम को आज ही ध्यानरूपी अग्नि से भस्म करता हूँ। इसप्रकार वह संसार के पंचेन्द्रिय भोगों की पीड़ा को पहचान कर जितेन्द्रिय बन कर सच्चे सुख की खोज में लग गया। एतदर्थ उसने चन्दन नामक पुत्र को राज्यभार सौंपकर | आनन्द मुनिराज के पास जाकर दीक्षा ले ली और शान्त भावों से सब अंगों का अध्ययन कर चिरकाल तक तपश्चरण किया। सोलहकारण भावनाएँ भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध किया। दर्शन-ज्ञान-चारित्र - तीन आराधनाओं का साधन किया तथा आयु के अन्त में समाधिमरण कर 'आरण' नामक पन्द्रहवें स्वर्ग || में इन्द्र हुआ। वहाँ उसकी आयु बाईस सागर पर्यन्त की थी। तीन हाथ ऊँचा शरीर था। द्रव्य व भाव - | दोनों लेश्यायें शुक्ल थीं। ग्यारह माह में श्वांस लेता है। बाईस हजार वर्ष में मानसिक आहार लेता था। लक्ष्मीवान था, मानसिक प्रविचार से संतुष्ट रहता था। प्राकाम्य आदि आठ गुणों से सहित था। उसके सुखों की अनुकूलता में असंख्यात वर्ष की आयु एकक्षण समान बीत गई। जब उसकी आयु के छह माह शेष रह गये और वह तीर्थंकर के रूप में अवतरित होनेवाला था, तब जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी मलय नामक देश में भद्रपुर नगर का स्वामी इक्ष्वाकुवंशी राजा दृढ़रथ की महारानी सुनन्दा के घर को कुबेर की आज्ञा से यक्ष जाति के देव ने छह माह पहले से रत्नों से भर दिया। मानवती सुनन्दा ने भी रात्रि के अन्तिम भाग में सोलह स्वप्न देखकर अपने मुख में प्रवेश करता हुआ एक हाथी देखा । प्रात:काल राजा ने उनका फल ज्ञात किया और उसीसमय चैत्रकृष्ण अष्टमी के दिन सदाचार आदि गुणों से सहित वह देव स्वर्ग से च्युत होकर रानी के उदर में अवतीर्ण हुआ। देवों ने आकर गर्भकल्याणक की पूजा की। माघ कृष्णा द्वादशी के दिन तीर्थंकर पुत्र का जन्म हुआ। उसीसमय बहुत भारी उत्साह से देव लोगों ने आकर जन्मोत्सव के साथ इन्द्राणी द्वारा माता की गोद में मायामयी बालक को सुलाकर तीर्थंकर पुत्र को उठाया और सुमेरु पर्वत ले गये। वहाँ उन्होंने बालक का अभिषेक किया और शीतलनाथ नाम रखा। भगवान पुष्पदन्त के मुक्त होने के बाद नौ करोड़ सागर का अन्तर बीत जाने पर शीतलनाथ का जन्म || EsNEE EFF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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