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चन्दन सम शीतल हो प्रभुवर, चन्द्र किरण से ज्योतिर्मय । कल्पवृक्ष से चिह्नित हो अरु, सप्तभयों से हो निर्भय ।। तुम सा ही हूँ मैं स्वभाव से, हुआ आज मुझको निर्णय । अब अल्पकाल में ही होगा प्रभु, मुक्तिरमा से मम परिणय ।।
जिनका कहा हुआ वीतरागधर्म कर्मरूप सूर्य से संतप्त प्राणियों के लिए चन्द्रमा के समान शीतल है, शान्ति उत्पन्न करनेवाला है, वे शीतलनाथ भगवान हम सबके लिए शीतलता प्रदान करें, शान्ति उत्पन्न करने में निमित्त बनें।
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दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ के कुछ महत्त्वपूर्ण प्रेरणाप्रद पूर्व भवों की चर्चा करते हुए आचार्य गुणभद्र र्थं | उत्तरपुराण में लिखते हैं कि पुष्करवर द्वीप के पूर्वार्द्ध भाग में जो मेरुपर्वत है, उसकी पूर्व दिशा के विदेहक्षेत्र में सीतानदी के दक्षिणतट पर एक वत्स नाम का देश है। उसके सुसीमानगर में पद्मगुल्म नामक राजा राज्य करता था । राजा साम-दाम-दण्ड और भेद की नीति में निपुण था । इसकारण राज्य में पूर्णरूप से सुशासन शी था। वह संधि-विग्रह के रहस्य को जाननेवाला था; अत: अन्य राजाओं के साथ भी सद्व्यवहार रखता | था । बुद्धिबल से उसने राज्य का खूब विस्तार कर लिया था। इसप्रकार धर्म, अर्थ और काम पुरुषार्थों के | फल को प्राप्तकर वह सुख-शान्ति से रहता था ।
उस गुणवान राजा ने दैव योग से बुद्धि के प्रयोग से और प्रयत्नपूर्वक उद्यम के द्वारा स्वयं श्री वृद्धि की थी, लक्ष्मी अर्जित की थी और प्राप्त लक्ष्मी का वह सर्वसाधारण के योग्य सभी प्रकार के और | सुलभ साधन जुटा कर प्रजा को प्रसन्न रखता था । न्यायोपार्जित धन के द्वारा याचकों को संतुष्ट रखता था।
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