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________________ हे देव! आप परम शान्त है आपकी वाणी कल्याणकारी है, आपका आदर्श चरित्र भव्य जीवों के लिए || || पथप्रदर्शक है; अत: हम सब भी आपकी शरण को प्राप्त हों - ऐसी कामना है। | जो पहले महापद्म नामक राजा हुए, फिर स्वर्ग में चौदहवें कल्पवासी इन्द्र हुए, तदनन्तर सुविधिनाथ नौवें तीर्थंकर हुए - ऐसे परम आराध्य सुविधिनाथ हम सबके मंगलमय हो। ॐ नमः । CREEFFFFy नोट - यद्यपि ये कथायें भगवान पुष्पदन्त के बाद चतुर्थं एवं पंचमकाल में घटी घटनाओं के आधार पर हैं, पर केवलज्ञान तो तीनों कालों को प्रत्यक्षवत् देखता-जानता है। अत: भविष्य में होनेवाली घटनाओं के आधार पर समाधान संभव है। प्रथमानुयोग की मूल कथावस्तु और करणानुयोग के सूक्ष्म कथन आदि सभी कुछ केवलज्ञान के आधार से ही लिखे गये हैं, इनमें शंका करने का अर्थ है सर्वज्ञता में शंका करना, केवलज्ञान में शंका करना, अपनी जिनवाणी माता पर अविश्वास करना । अत: आत्मकल्याण चाहनेवाले पाठकों को इन्हें नय, प्रमाण और युक्तियों से निर्णय करके आगम में यथार्थ श्रद्धा रखना ही श्रेयस्कर है। - लेखक विधि का विधान अटल है विधि का विधान अटल है, उसे कोई टाल नहीं सकता। जो घटना या कार्य जिससमय, जिसके निमित्त से, जिसरूप में होना है; वह उसीसमय, उसी के निमित्त से, उसीरूप में होकर ही रहता है। उसे टालना तो दूर, आगे-पीछे भी नहीं किया जा सकता; बदला भी नहीं जा सकता । क्षेत्र से क्षेत्रान्तर भी नहीं किया जा सकता। - सुखी जीवन, पृष्ठ-१३५
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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