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________________ १२० || किया, दूसरे ने डॉक्टर को, तीसरे ने दवा को मुख्य किया और चौथै ने आयुकर्म को मुख्य कर दिया । | इसी कथन शैली को तो स्याद्वाद कहते हैं । श ला का पु रु pm F F ष उ त्त अरे भाई! जिसकी होनहार भली हो उसे तो एक के बाद एक अनुकूल निमित्त भी मिलते जाते हैं और उसके परिणामों में विशुद्धि आती जाती है, रुचि बढ़ती जाती है । निमित्त तो इसको पहले भी कम नहीं मिले और उन्होंने कितना समझाने की कोशिश की, पर कहाँ समझे ? जब तत्त्वज्ञान हो जाता है तो कभी सत्साहित्य को श्रेय देते हैं, कभी अपने मित्र को धन्यवाद देते हैं, कभी अपने भाग्य को सराहते हैं तो कभी अपने गुरुजी की प्रशंसा करते हैं। इसप्रकार कभी किसी को मुख्य करते हैं और कभी किसी को । जब किसी एक को मुख्य करते हैं तो शेष कारण अपने-आप गौण हो जाते हैं। रा ती र्थं यही बात णमोकार महामंत्र संबंधी पौराणिक कथाओं के संबंध में भी जानना चाहिए। यहाँ स्वर्गादिक र्द्ध की प्राप्ति में परिणामों की विशुद्धि आदि कारण तो अनेक हैं, पर परमेष्ठी की शरण में पहुँचाने के प्रयोजन | से णमोकार मंत्र के सुनने-सुनाने को मुख्य किया है और शेष कारणों को गौण कर दिया है। ताकि सभी | लोग नरकादि के भय और स्वर्गादि प्राप्ति के प्रलोभन से पंचपरमेष्ठी की शरण में आयें । यहाँ आने के बाद जब वे अरहंतादि का स्वरूप समझेंगे तो उन्हें स्वतः ही सच्चा मोक्षमार्ग मिल जायेगा और स्वर्गादि के क्षणिक सांसारिक सुखों से भी विरक्ति हो ही जायेगी ।" भगवान पुष्पदन्त की दिव्यध्वनि में यह आया । क र सु अंत में सम्मेदशिखर पर योग निरोध कर भाद्रशुक्ल अष्टमी के दिन शाम के समय एक हजार मुनियों के साथ मोक्ष को प्राप्त हो गये। देवगण आये और उनका निर्वाण का महोत्सव मनाकर स्वर्ग चले गये । धि ना थ पर्व जिन्होंने मोक्ष का कठिन मार्ग दूसरों को सरल कर दिया, जिन्होंने चित्त में उपशमभाव धारण करनेवाले भक्तों के लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया। जिनकी दंतपंक्ति खिले हुए पुष्प के समान अति सुन्दर है | ऐसे भगवान पुष्पदन्त को हमारा बारम्बार नमस्कार । -
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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