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________________ CREE F IFE 19 | के समय उनकी उपस्थिति होती है; अत: कभी किसी को महत्त्व मिल जाता है और कभी किसी को । वक्ता के द्वारा जब जिसको जैसा मुख्य गौण करना होता है, कर देता है। वास्तविक कारण तो जीव की तत्समय की योग्यता ही है। अन्य कारण कलाप तो समय पर मिलते ही हैं। कहा भी है - तादृशी जायते बुद्धिः व्यवसायश्चतादृशाः। सहायतास्तादृशाः संति यादृशी भवितव्यता ।। अर्थात् जीव का जिससमय जैसा-जो होना होता है, तदनुसार ही बुद्धि या विचार उत्पन्न हो जाते हैं। प्रयत्न भी वैसे ही होने लगते हैं, सहयोगियों में वैसा ही सहयोग करने एवं दौड़-धूप करने की भावना बन जाती है और कार्य हो जाता है; अत: कारणों के मिलाने की आकुलता मत करो। देखो! कारण मिलाने | को मना नहीं किया है, बल्कि कारण मिलाने की आकुलता न करने को कहा है। | जिसे वस्तु के स्वतंत्र परिणमन में श्रद्धा-विश्वास हो जाता है, उसे आकुलता नहीं होती। भूमिकानुसार जैसा राग होता है, वैसी व्यवस्थाओं का विकल्प तो आता है, पर कार्य होने पर अभिमान न हो तथा कार्य न होने पर आकुलता न हो; तभी कारण-कार्य व्यवस्था का सही ज्ञान है - ऐसा माना जायेगा। यहाँ कोई कह सकता है कि यदि दवायें और डॉक्टर कुछ नहीं करते तो लाखों डॉक्टर्स, करोड़ों रुपयों के मेडिकल साधन सब बेकार हैं क्या ? और क्या शासन का करोड़ों रुपयों का मेडिकल बजट व्यर्थ ही बरबाद हो रहा है, पानी में जा रहा है? यह किसने कहा है कि सब बेकार है ? मैं तो यह कह रहा हूँ कि जब जो कार्य होना होता है, तब उसके अनुरूप सभी कारण कलाप मिलते ही हैं। कहने का अर्थ यह है कि एक कार्य होने में अनेक कारण मिलते हैं; किन्तु कथन किसी एक कारण की मुख्यता से किया जाता है, अन्य कारण गौण रहते हैं। मुख्य-गौण करके कथन करने की ये ही तो विभिन्न अपेक्षायें हैं। पहले व्यक्ति ने पड़ौसी को मुख्य ॥८ E NEPF
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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