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________________ जीवन्धर और उनके माता-पिता रानी विजया व सत्यन्धर को मरणतुल्य कष्ट झेलने पड़ेंगे, १२. महासती | मनोरमा को मजदूरी करनी पड़ेगी, १३. सुदर्शन सेठ को सूली पर चढ़ाया जायेगा, १४. सैंकड़ों मुनियों को घानी में पिलना पड़ेगा, १५. अकम्पनाचार्य आदि ७०० मुनियों को बलि आदि मंत्रियों कृत उपसर्ग झेलने | पड़ेंगे। आखिर ऐसा क्यों होगा ? भविष्य में यह सब होगा, जो मेरे ज्ञान में स्पष्ट झलक रहा है। | जबकि ये सब पंच नमस्कार मंत्र के आराधक तो होंगे ही, इनमें अधिकांश तद्भव मोक्षगामी और | भावलिंगी संत भी होंगे और आदिनाथ व पार्श्वनाथ तो साक्षात् तीर्थंकर भगवान की पूर्व भूमिका में ही स्थित होंगे, फिर भी उन पर उपसर्ग क्यों होगा ? इससे स्पष्ट है कि अकेले मंत्रों के स्मरण से ही कार्य की सिद्धि नहीं होती। कार्य की सिद्धि तो अनेक कारणों से ही होती है। फिर भी जिस कारण की महिमा बतानी होती है; प्रथमानुयोग की कथाओं में उसे मुख्य करके शेष कारणों को गौण कर दिया जाता है। यही प्रथमानुयोग की कथनशैली है। देखो ! एक कार्य के होने में अनेक कारण मिलते हैं, तब कहीं कार्य संपन्न होता है तथा अपने-अपने दृष्टिकोण से सभी कारण महत्त्वपूर्ण होते हैं। जिसप्रकार लाखों रुपयों की मशीन में दो रुपये के स्क्रू का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, उसीप्रकार प्रत्येक कार्य में सभी कारणों का अपना-अपना स्थान है; पर कथन में कभी कोई कारण मुख्य होता है और कभी कोई अन्य। उदाहरण के तौर पर हम एक ऐसे बीमार व्यक्ति को लें, जिसे अचानक हार्टअटैक हुआ है और डॉक्टर के कहे अनुसार यदि समय पर मेडिकल सहायता न मिलती तो वह दो घंटे में ही दम तोड़नेवाला था, परन्तु पड़ौसी ने यथासमय उसे इमरजेंसी वार्ड में पहुँचाकर और होशियार डॉक्टर को बुलाकर, रात में २ बजे मेडिकल स्टोर्स खुलवाकर, बीमार को बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक दवा की व्यवस्था कर दी; जिससे वह बीमार व्यक्ति बच गया। इसप्रकार उस रोगी के प्राण बचाने में चार कारण मिलें - १. पड़ोसी, २. डॉक्टर, ३. मेडीकल स्टोर वाला और ४. दवा।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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