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• अंतिम आठवीं कथा में तो यहाँ तक कहा होगा कि विवेकहीन सुभग ग्वाला उस मंत्र के प्रथम पद श || के उच्चारण मात्र से तद्भव मोक्षगामी सुदर्शन सेठ हुआ और उसने उसी भव से मुक्ति की प्राप्ति की।
यहाँ यह शंका स्वाभाविक है कि - क्या ये कथाएँ कल्पित होंगी?
समाधान - नहीं, पौराणिक कथायें पौराणिक होती हैं, न कल्पित न मिथ्या; परन्तु प्रथमानुयोग के प्रयोजन व कथन पद्धति को न समझनेवाले उन कथाओं का अन्यथा अभिप्राय ग्रहण करके अर्थ का अनर्थ करते अवश्य देखे जाते हैं। यदि उपर्युक्त कथाओं के कथन का प्रयोजन व अभिप्राय ग्रहण करके अक्षरश: सर्वथा ऐसा ही मान लिया जाये तो जो प्रतिदिन नियमितरूप से त्रिकाल णमोकार मंत्र का जाप करते हैं, पंचपरमेष्ठी का ध्यान करते हैं, उनके जीवन में अनेक दुःख या संकट क्यों देखे गये? अथवा जो स्वयं पंचपरमेष्ठी में शामिल हैं - ऐसे पाँचों पांडवों पर ऐसा भयंकर उपसर्ग क्यों होगा? उन्हें अंगार सदृश जलते हुए लोहे के कड़े क्यों पहनाये जायेंगे ? और पहना भी दिये जायेंगे तो वे ठंडे क्यों नहीं होंगे।
ऐसे और भी अनेक पौराणिक उदाहरण दिये जा सकते हैं, जिन्होंने हृदय से पंचपरमेष्ठी की आराधना की, प्रतिदिन णमोकार मंत्र का जाप किया और स्वयं भी पंचपरमेष्ठी के पदों पर विराजमान रहे, फिर भी उन्हें अनेक प्रतिकूल प्रसंगों का सामना करना पड़ा और आगे भी करना पड़ेगा।
जैसे कि १. भावलिंगी संत तद्भव मोक्षगामी सुकुमाल मुनि को स्यालिनी खायेगी, २. सुकौशल मुनिराज को शेरनी खायेगी, ३. गजकुमार मुनिराज के सिर पर जलती हुई सिगड़ी रख दी जायेगी, ४. राजा श्रेणिक के द्वारा मुनिराज के गले में मरा हुआ सांप डालने से मुनिराज को लाखों चींटियाँ काटेंगी, ५. श्रीपाल को कुष्ट रोग होगा, ६. तीर्थंकर के भव में मुनि पार्श्वनाथ पर कमठ का उपसर्ग होगा, ७. प्रथम तीर्थंकर मुनिराज आदिनाथ को छह माह तक प्रतिदिन लगातार आहार हेतु निकलने पर भी आहार नहीं मिला, ८. महासती सीता को दो-दो बार वनवास के दुःख उठाने पड़ेगें, ९. तद्भव मोक्षगामी राम भी १४ वर्ष तक वन-वन भटकते फिरेगें, १०. प्रद्युम्नकुमार को अनेक संकटों का सामना करना पड़ेगा, ११. ||