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तीर्थंकर भगवान की दिव्यध्वनि में आया कि इस महामंत्र के संबंध में समय-समय पर प्रचारित किंवदन्तियों एवं पौराणिक कथा-कहानियों से जहाँ एक ओर जैनजगत में इस महामंत्र के प्रति श्रद्धा उत्पन्न पु हुई है, जिज्ञासा जगी है; वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास एवं भ्रान्त धारणायें भी कम प्रचलित नहीं होंगी । इन भ्रान्त धारणाओं एवं अंधविश्वासों के निराकरण के लिए इस महामंत्र के सही स्वरूप का एवं प्रचलित कथा-कहानियों का यदि अभिप्राय समझकर अनुशीलन / परिशीलन किया जायेगा तो ही सही समाधान होगा ।
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समोशरण धर्मसभा में एक जिज्ञासु को जिज्ञासा जगी। उसके मन में प्रश्न उठा कि हे प्रभो! णमोकार मंत्र के माहात्म्य में बहुत-सी किंवदन्तियाँ और कथाएँ प्रचलित हैं। उनका मूल प्रयोजन क्या है ?
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"देखो, इन भोले भक्तों का अविवेक, ये वीतरागी सर्वज्ञ भगवान से कैसी-कैसी सौदेबाजी करते हैं। | उनसे अपने मनोरथों की पूर्ति कराने के लिए उन्हें कैसे-कैसे प्रलोभन देते हैं। उनसे कैसी-कैसी शर्तें लगाते हैं। कहते हैं - 'यदि आप हमारे बच्चे को ठीक कर दोगे, मुकदमा जिता दोगे, कमाई करा दोगे, लाटरी खुलवा दोगे...तो हम आपको छत्र चढ़ायेंगे, पूजा-विधान करायेंगे, घी के दीपक की अखण्ड ज्योति जलायेंगे, आपके तीर्थस्थान की ससंघ यात्रा करने आयेंगे, यदि बहू के बेटा हो जायेगा तो उसका मुण्डन कराने तो यहाँ आयेंगे ही, मन्दिर का जीर्णोद्धार भी करा देंगे, तीरथ पर सीढ़ियाँ लगवा देंगे। मानों, भगवान यह सब कराने के लिए तरस रहे हों, आशा लगाये ही बैठे हों ।
इन्हें अपने भगवान पर इतना भी भरोसा नहीं है कि पहले पूजा-पाठ आदि जो कराना चाहता है, करा | दे; बाद में काम तो हो ही जायेगा। पर नहीं, क्या भरोसा भगवान का ? काम न हुआ तो ? लोक में ऐसी | शंका नहीं करता। हवाई जहाज व रेल के टिकट महीनों पहले लेता है, माल का एडवांस पहले देता है, | डॉक्टर की फीस पहले देता है, पर भगवान की पूजा-पाठ कामनायें पूरी होने पर करेगा ?"
" णमोकार महामंत्र जैसे अनादि शाश्वत अचिन्त्य महिमावंत महामंत्र के साथ भी पता नहीं लोग कैसी-कैसी सशर्त कामनायें करते हैं ? फिर लौकिक घटनायें जोड़कर उसकी महिमा बढ़ाना चाहते हैं। पर
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