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________________ REEFFFFy आदि उत्कृष्ट गुणों से उसका ऐश्वर्य बढ़ा हुआ था । वहाँ के दीर्घ सुख भोगकर वह तीर्थंकर के रूप में जिसके कुल में जन्म लेनेवाला था, उसका परिचय कराते हुए कहते हैं कि इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र की काकन्दी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी सुग्रीव राजा राज्य करता था। उसकी पट्टरानी जयरामा थी। उस रानी ने देवों द्वारा अतिशय श्रेष्ठ रत्नवृष्टि आदि द्वारा सम्मान को पाकर फाल्गुन कृष्णा नवमी के दिन प्रभातकाल के समय सोलह स्वप्न देखे। प्रात:काल उसने अपने पति से उन सोलह स्वप्नों का फल जानकर अत्यन्त हर्षित हुई। मार्गशीर्ष शुक्ल प्रतिपदा के दिन उस महादेवी के उत्तम पुत्र हुआ। उसीसमय इन्द्रों ने आकर उनका क्षीरसागर के जल से अभिषेक किया। आभूषण पहनाये और कुन्द के फूल के समान कान्ति से सुशोभित शरीर की | दीप्ति से विराजित उन बाल तीर्थंकर का नाम पुष्पदन्त रखा। नौवें तीर्थंकर पुष्पदन्त आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के नब्बे करोड़ सागर के अन्तराल बाद हुए थे। भगवान पुष्पदन्त की आयु भी इसी अन्तराल में सम्मिलित थी। दो लाख पूर्व की उनकी आयु थी। सौ धनुष ऊँचा उनका शरीर था। पचास हजार पूर्व तक उन्होंने कुमार अवस्था का सुख प्राप्त किया था। शेष जीवन भी तीर्थंकर जैसे पुण्य प्रकृति की सत्ता में रहने से बहुत ही लौकिक अनुकूलता में बीता, परन्तु उस सुख में रहते हुए भी उन्हें एक उल्कापात देखकर संसार के क्षणभंगुरत्व का आभास हो गया; जिससे उन्हें वैराग्य हुआ। उनके मन में इसप्रकार का विचार आया कि वह उल्का (विद्युत) नहीं, बल्कि मेरे अनादिकालीन मोहरूपी अन्धकार को नष्ट करनेवाली दीपिका है। इसप्रकार उस उल्का के निमित्त से प्रतिबुद्ध होकर तत्त्व का इसप्रकार विचार करने लगे कि आज मैंने स्पष्ट देख लिया है कि यह संसार विडम्बनारूप है। काम, क्रोध, शोक, भय, उन्माद, स्वप्न और चोरी आदि में लिप्त या मूर्च्छित हुआ प्राणी सामने रखे हुए असत् पदार्थ को भी सत् समझता है। इस संसार में न तो कोई भी वस्तु स्थिर है और न शुभ है, न कुछ सुख देनेवाली है और न कोई पदार्थ मेरा है। मेरा तो मात्र मेरा आत्मा ही है। यह सारा संसार मुझसे जुदा है |
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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