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________________ ११० श ला का पु रु ष pm F F 995 उ त्त रा र्द्ध ८ अष्टविधि से रहित हो, फिर भी कहाते सुविधि नाथ । तिल - तुष परिग्रह भी नहीं, फिर भी कहाते जगतनाथ ।। जो शरण उनकी गहत है, वह होत भवदधि पार है । अक्षय अनन्त ज्ञायक प्रभु की, वन्दना शत बार है ।। जिन्होंने अनेक जीवों को मोक्षमार्ग में लगाया, मोक्षमार्ग की सम्यक् विधि बताई - ऐसे सुविधिनाथ हमारे मार्गदर्शक बने । जो अष्टविधि कर्म से रहित हैं; फिर भी जिनका नाम सुविधिनाथ है - ऐसे सुविधिनाथ हमारे कल्याण में निमित्त बनें। जिनके पास तिलतुषमात्र परिग्रह नहीं है फिर भी इन्द्रों ने उनकी जगतनाथ कहकर स्तुति की है । जो ऐसे सुविधिनाथ की शरण में आता है वह निश्चित ही भवोदधि से पार हो जाता | है । अत: उन अक्षय अनन्त नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ, जिनका दूसरा नाम पुष्पदन्त है, उन्हें सौ-सौ बार नमन करता हुआ, उनका संक्षिप्त चरित्र लिखने का प्रयास कर रहा हूँ, साहस जुटा रहा हूँ । मैं जानता हूँ, मानता भी हूँ कि “वस्तु की स्थिति सदा एक जैसी नहीं रहती', फिर भी मैं इस संकल्प में सफल होऊँगा - इस आशा से इस 'शलाका पुरुष' को पूरा करने हेतु आशान्वित हूँ । ती र्थं क सुविधिनाथ के पूर्व भवों का परिचय कराते हुए आचार्य गुणभद्र उत्तरपुराण में कहते हैं कि “पुष्करार्ध धि द्वीप की पूर्व दिशा में जो मेरुपर्वत हैं, उसके पूर्व विदेह क्षेत्र में सीता नदी के उत्तर तट पर पुष्कलावती ना | नाम का एक देश है। उसकी पुण्डरीकिणी नगरी में महापद्म नाम का राजा राज्य करता था, वह अत्यन्त थ | पराक्रमी था । वह अपनी प्रजा का दूध देनेवाली गाय के समान भरण-पोषण करता था, उसकी सुरक्षा करने और सुखी करने का पूरा-पूरा प्रयास करता था । प्रजा भी प्रसन्नता से राज्य को 'कर' देकर राजा के भंडार पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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