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________________ १०९ श ला हे भगवन् ! आप ही बतायें वास्तविकता क्या है ? गणधरदेव ने उत्तर में कहा - " वस्तुतः कोई भी | वस्तु न सर्वथा नित्य है और न सर्वथा अनित्य है । न ज्ञानमात्र है और न शून्यरूप ही है; किन्तु प्रत्येक वस्तु अस्ति नास्ति रूप अनेक धर्मोवाली है। आत्मा है; क्योंकि उसमें ज्ञान का सद्भाव है । आत्मा पुनर्जन्म लेता है; क्योंकि उसे पूर्व पर्याय का स्मरण होता है, संस्कार भी पूर्वजन्म के अगले जन्म में जाते हैं। आत्मा सर्वज्ञ स्वभावी है; क्योंकि उसके ज्ञान में वृद्धि होते देखी जाती है । " का पु रु pm. IFF ष उ त्त रा र्द्ध हे भव्य ! एकद्रव्य से दूसरा द्रव्य जुदा है। एक द्रव्य में रहनेवाले अनंत गुण भी जुदे हैं, प्रत्येक द्रव्यगुण- पर्याय स्वतंत्र एवं स्वावलम्बी हैं। " शंकाकार ने कृतज्ञता प्रगट करते हुए स्तुति की - “हे नाथ ! आपने स्याद्वाद शैली में अनेकान्त स्वरूप वस्तु को समझाया । आत्मवस्तु के अकर्ता स्वभाव को समझाकर जीवों की राग-द्वेष- परिणति को कम करने में जो महान योगदान दिया है, उसके लिए तत्त्वज्ञानी आपका महान उपकार मानते हैं । " तत्पश्चात् चन्द्रप्रभस्वामी के समोशरण ने समस्त आर्य देशों में विहार कर धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करते हुए सम्मेदशिखर जाकर विहार बंद कर दिया तथा एक हजार मुनियों सहित प्रतिमा योग धारण कर एक | माह तक शिला पर आरूढ़ हो ध्यानस्थ रहे । फाल्गुन शुक्ल सप्तमी के दिन शाम के समय योग निरोध कर चौदहवें गुणस्थान को प्राप्त हुए तथा चतुर्थ शुक्ल ध्यान के द्वारा शरीर का त्याग कर सर्वोत्कृष्ट सिद्धपद प्राप्त किया। उसीसमय इन्द्रों ने आकर निर्वाणकल्याणक महोत्सव मनाया। जो पहले श्रीवर्मा हुए, फिर श्रीधर देव हुए, फिर अजितसेन तत्पश्चात् अच्युत स्वर्ग के इन्द्र हुए, फिर पद्मनाभ हुए, उसके बाद अहमिन्द्र तदनन्तर अष्टम तीर्थंकर हुए। ऐसे चन्द्रप्रभस्वामी के चरणों में शत्-शत् वन्दन, शत्-शत् नमन । यदि मन में शंकाशील हो गया हो तो द्रव्यानुयोग का विचार करने योग्य है, प्रमादी हो गया हो तो चरणानुयोग का विचार करना योग्य है और कषायी हो गया हो तो प्रथमानुयोग (कथा-पुराण) को विषयवस्तु का विचार करना योग्य है और यदि जड़ हो गया हो तो करणानुयोग का विचार करना योग्य है। - अज्ञात ती र्थं क र च न्द्र भ पर्व
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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