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________________ CREE FOR "FF 0 उस महाभाग अहमिन्द्र के स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होने के छह माह पूर्व से ही प्रतिदिन सत्ता में विद्यमान तीर्थंकर नामक पुण्य प्रकृति के प्रभाव से जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के अधिपति इक्ष्वाकुवंशीय काश्यप गोत्रीय राजा जितशत्रु के घर में इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा की। तदनन्तर जेठ महीने की अमावस्या के दिन महारानी विजयसेना ने सोलह स्वप्न देखें। माता विजयसेना ने मुखकमल में प्रवेश करता मदोन्मत्त हाथी भी देखा। प्रात:काल महारानी ने पति जितशत्रु से स्वप्नों का फल पूछा । देशावधि ज्ञान के धारक जितशत्रु ने उनका फल बतलाते हुए कहा - कि तुम्हारे गर्भ में विजय नामक सर्वार्थसिद्धि विमान से तीर्थंकर पुत्र अवतीर्ण हुआ है। वह पुत्र गर्भ में ही मति-श्रुत-अवधि - तीन ज्ञान नेत्रों से दैदीप्यमान है। जिसप्रकार नीति अभ्युदय को जन्म देती है उसीप्रकार माता विजयसेना ने माघमास के शुक्लपक्ष की दशमी के दिन भावी तीर्थंकर बालक अजितनाथ को जन्म दिया। जन्म होते ही तीर्थंकर होनेवाले बालक का देव-देवेन्द्रों द्वारा मेरु पर्वत पर ले जाकर महोत्सव के साथ जन्माभिषेक किया गया। तीर्थंकर अजितनाथ की बहत्तर लाख पूर्व की आयु थी। उनका शरीर स्वर्ण के समान पीतवर्ण का था। जब उनकी आयु का चतुर्थ अंश बीत चुका था, तब उन्हें राज्य प्राप्त हुआ। एक समय महाराजा अजितनाथ महल की छत पर बैठे थे; उन्होंने भोगों की अस्थिरता की प्रतीक आकाश में क्षणभंगुर उल्कापात को चमक कर नष्ट होते देखा। तो वे तत्काल विषय भोगों से विरक्त हो गये। उसीसमय लौकान्तिक देवों ने ब्रह्म स्वर्ग से आकर उनके वैराग्य की प्रशंसा की। जिसप्रकार व्यक्ति देखते तो अपने नेत्रों से हैं; परन्तु सूर्य उसमें सहायक या निमित्त बन जाता है। उसीप्रकार अजितनाथ थे तो स्वयंबुद्ध; किन्तु लौकान्तिक देवों द्वारा उनके वैराग्यवर्द्धक विचारों के अनुकूल उद्बोधन उनके लिए निमित्त बन गया। फिर देर का क्या काम ? वे तुरंत समस्त राज्यभार अजितसेन नामक पुत्र को सौंपकर जिनदीक्षा लेने को तत्पर हो गये। देव-देवेन्द्र उनका दीक्षाकल्याणक महोत्सव मनाने हेतु १. सम्पूर्ण जानकारी के लिए शलाका पुरुष भाग-१ देखें।
SR No.008375
Book TitleSalaka Purush Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2003
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size1 MB
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