SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ BEFFFF पाँचों समितियों का संक्षिप्त स्वरूप इसप्रकार है - १. अनन्तानुबंधी, अप्रत्याख्यानावरण एवं प्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ का अभाव हो | जाने से मुनिराज जब भी आहार-विहार-निहार तथा देवदर्शन, तीर्थवन्दना आदि प्रशस्त प्रयोजन से गमन करते हैं तो प्रमाद छोड़कर चार हाथ आगे की जमीन देखकर, दिन में, प्रासुकमार्ग से ही गमन करते हैं। उनकी इस क्रिया को ईर्यासमिति कहते हैं। | २. इसीप्रकार उपर्युक्त कषायों का अभाव हो जाने से मुनिराज दूसरों को पीड़ाकारक-कर्कष-निन्द्य वचन कभी नहीं बोलते। जब भी बोलते हैं तो हित-मित-प्रिय और संशयरहित, मिथ्यात्वरूपी रोग का विनाश करने वाले वचन ही बोलते हैं। उनकी इसप्रकार की वाचिक क्रिया को भाषासमिति कहते हैं। ३. ध्यान, अध्ययन व तप में बाधा उत्पन्न करनेवाली क्षुधा-तृषा के लगने पर तपश्चरणादि की वृद्धि के लिए मुनिराज ४६ दोषों से रहित, ३२ अन्तराय और १४ मलदोष टालकर कुलीन श्रावक के घर दिन में ही खड़े-खड़े एक बार जो अनुद्दिष्ट आहार ग्रहण करते हैं, उसे एषणासमिति कहते हैं। ४. मुनिराज अपने शुद्धि, संयम और ज्ञानसाधन के उपकरण, कमण्डलु, पिच्छी और शास्त्र को सावधानीपूर्वक इसतरह देखभाल कर उठाते-रखते हैं कि जिससे किसी भी जीव को किंचित् भी बाधा उत्पन्न नहीं होती। मुनि की इस प्रमाद रहित क्रिया को आदाननिक्षेपण समिति कहते हैं। ५. साधु ऐसे स्थान पर मल-मूत्र एवं कफादि क्षेपण करते हैं, जो निर्जन्तुक हो, अचित्त हो, एकांत हो, | नगर से दूर निर्जन हो, पर के अवरोध से रहित हो तथा जहाँ बिल व छिद्र न हों। उनकी यह क्रिया प्रतिष्ठापना समिति कहलाती है। इस संदर्भ में जिनवाणी का निम्नांकित कथन द्रष्टव्य है - परमाद तजि चौकर मही लखि, समिति ईर्या तैं चलें। जग सुहितकर सब अहितहर, श्रुति सुखद सब संशय हरैं; भ्रमरोगहर जिनके वचन मुखचंद्र ते अमृत झएँ ।। 40 41REE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy