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________________ शलाका पुरुष मंगलाचरण मंगलमय आदीश जिनेश्वर, मंगलमय जिनवर वाणी। मंगलमय जिनसेन मुनीश्वर, मंगल सुकथा कल्याणी ।।१।। घाति कर्म जिनने धो डाले, वे हैं वीतराग भगवान । लोकालोक झलकते जिसमें, ऐसा उनका केवलज्ञान ।।२।। तीर्थंकर पद के धारक प्रभु ! दिया जगत को तत्त्वज्ञान । दिव्यध्वनि द्वारा दर्शाया, प्रभुवर ! तुमने वस्तु विज्ञान ।।३।। पूर्व पीठिका : धर्मकथा/कथा/विकथा शलाका पुरुषों की पुण्यकथा लिखने के पूर्व पूर्वपीठिका द्वारा कुछ ऐसी जानकारी देना आवश्यक प्रतीत होता है, जिससे शलाका पुरुष' की विषय-वस्तु समझने में सुविधा रहे; एतदर्थ सर्वप्रथम धर्मकथा, सत्कथा, कथा और विकथा का स्वरूप एवं इनके फल का पाठकों को सामान्य परिचय कराना प्रासंगिक है, जिससे पाठक विकथाओं से बचें एवं धर्मकथा, सत्कथा करें। ऐसा करने से पाठक पाप प्रवृत्ति से बचेंगे और पुण्य के पथ में पदार्पण कर धर्म के मार्ग में अग्रसर होंगे। धर्मकथा और विकथा का अन्तर इसलिए भी जानना जरूरी है कि पुराणों में भोग प्रधान जीवन जीने वाले राजा-महाराजाओं एवं युद्ध आदि की विषयवस्तु पढ़ने से यह आशंका स्वाभाविक है कि ये कथायें | तो स्पष्ट विकथायें हैं; फिर इन्हें धर्मकथाओं में सम्मिलित क्यों किया गया है ?
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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