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________________ । अपनी बात डॉ.ए.एन. उपाध्ये लिखते हैं कि - "पुरानी बात को पुराण कहते हैं। जब वे बातें महापुरुषों के बारे में कही जाती हैं या महान आचार्यों द्वारा महापुरुषों के कथानकों के माध्यम से उपदेश के रूप में लिखी जाती हैं तब वे लिखित ग्रन्थ महापुराण कहलाते हैं।" इसप्रकार जो कृतियाँ महापुरुषों से सम्बन्धित हों एवं कल्याणकारी उपदेशों से भरपूर हों - वे सब कृतियाँ पुराणों या महापुराणों की श्रेणी में गिनी जा सकती हैं। प्रस्तुत ‘शलाकापुरुष' ग्रन्थ इसी दिशा में किया गया एक लघु प्रयास है। इस ग्रन्थ को आचार्य जिनसेन और आचार्य गुणभद्र कृत आदिपुराण और उत्तरपुराण का लघु संस्करण कहें तो अत्युक्ति नहीं होगी। उनके द्वारा प्रस्तावित मूल कथानक को तथा आध्यात्मिक एवं सैद्धान्तिक तथ्यों को ही मैंने अपनी भाषा-शैली में लिखने का प्रयास किया है। आज की इस टी.वी., सिनेमा संस्कृति के कारण प्राचीन शैली में एवं अपभ्रंश व संस्कृत निष्ठ भाषा में लिखित बड़े-बड़े ग्रन्थ, बड़े-बड़े ग्रन्थालयों/पुस्तकालयों में दर्शनीय वस्तु बनकर रह गये हैं। यदि कभी धूल झड़ती भी है तो केवल शोध स्नातकों द्वारा ही झड़ती है। आज की शास्त्र सभाओं में भी ये ग्रन्थ पढ़ते हुए देखने में नहीं आते। ___ हरिवंश कथा पर अपना अभिमत लिखते हुए इन्दौर निवासी विद्वतपरिषद के पूर्व अध्यक्ष संहितासूरि पण्डित नाथूलालजी शास्त्री ने भी यह स्वीकार किया है कि - “श्री पण्डित रतनचन्दजी द्वारा लिखित हरिवंश कथा-स्वाध्यार्थियों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली उपयोगी और सार्थक रचना है। ढूँढारी भाषा में प्रकाशित प्रथमानुयोग के ग्रन्थ अथवा संस्कृत शब्दों के हिन्दी अर्थ सहित प्रकाशित ग्रन्थ - । दोनों ही से स्वाध्यायार्थी संतुष्ट नहीं थे; क्योंकि वे सर्व साधारण के लिए बोधगम्य नहीं हैं। ल +E CE
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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