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________________ २३७ श ला का पु रु ष कि कल्पवृक्ष अभी फल नहीं दे रहे, सेनापति ने देखा कि सिंह वज्र के पिंजड़े को तोड़कर कैलाश पर्वत को उल्लंघन करने को तैयार है। इसीप्रकार तीर्थंकर ऋषभदेव के निर्वाण होने का समय समीप है, इस बात के सूचक स्वप्न देखें। स्वप्नों के फल में पुरोहित ने कहा - "भगवान ने अपनी दिव्यध्वनि का संकोच कर लिया है।' उसी प्रात:काल 'आनंद' नामक दूत समाचार लाया कि प्रभु ऋषभदेव के मोक्षगमन का समय निकट आ गया है, वे स्वरूपानंद में मग्न हैं, दिव्यध्वनि बन्द है, तुरन्त ही समस्त परिवारजनों के साथ भरत चक्रवर्ती भगवान के समीप कैलाश पर्वत पर पहुँचे और १४ दिन की महामह नामक पूजा प्रारंभ की। भ र miss to त मोक्षकल्याणक - माघकृष्णा चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के समय भगवान ऋषभदेव पूर्व दिशा में मुख जी करके अनेक मुनियों सहित पर्यंकासन विराजमान हुए। सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाति नामक तीसरे शुक्लध्यान द्वारा का मन-वचन-काय - तीनों योगों का निरोध करके अयोगी हो गये । अन्तिम चतुर्दशवें गुणस्थान में पाँच लघुस्वर के उच्चारण जितने समय में चौथे व्युपरत क्रियानिवर्तिनी नामक शुक्ल ध्यान द्वारा शेष चार रा | अघातिया कर्मों का क्षय करके कैलाशगिरि से मुक्त हो गये, उन्होंने अशरीरी सिद्धपद प्राप्त कर लिया । ग्य मुक्त होने का अर्थ है दुःखों से, विकारों से, कर्मबन्धनों से मुक्त होना । इसे ही मोक्ष कहते हैं। मोक्ष आत्मा की अनन्त आनन्दमयदशा, अतीन्द्रिय सुख एवं अतीन्द्रिय ज्ञानमयदशा है। भव्य जीवों का यह मोक्ष ही अन्तिम साध्य है । सम्पूर्ण धर्म आराधना इस मुक्ति की प्राप्ति हेतु ही होती है। भगवान ऋषभदेव ने पुरुषार्थ व का अन्तिम फल प्राप्त कर लिया। चार पुरुषार्थों में अन्तिम मोक्ष पुरुषार्थ ही है । उसे प्राप्त कर लेने पर उनकी ल्य सम्पूर्ण साधना सफल हो गई। प्रा प्ति इन्द्रों के साथ चक्रवर्ती भरत ने भगवान के मोक्षकल्याणक का महोत्सव मनाया। सर्ग भले निर्वाण कल्याणक महोत्सव ही क्यों न हो; परन्तु धर्मानुरागी जीवों को तो वियोगजनित दुःख होता
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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