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________________ #FE FE | जिनेन्द्र भक्ति है। अपनी इच्छानुसार मनमाने ढंग से उछलना-कूदना, नाचना-गाना, संगीत में रस लेना | जिनेन्द्र भक्ति नहीं है।" पुनः प्रश्न - "स्वामिन् स्वेच्छाचारी भक्ति, भक्ति क्यों नहीं है ? उसमें भी तो आपके ही गीत गाये जाते हैं।" | उत्तर - "हे अर्ककीर्ति ! तुम जो आत्मध्यान करते हो, वही हमारी यथार्थ भक्ति है। युक्ति को जानकर जो भक्ति करते हैं, वे मुक्ति को नियम से प्राप्त करते हैं। इसलिए भक्ति के रहस्य को जानकर भक्ति करना चाहिए। वस्तुत: 'गुणेषु अनुरागः भक्तिः' इस सूत्र के अनुसार जिनेन्द्र के वीतरागता-सर्वज्ञता आदि गुणों की पहचानपूर्वक जिनेन्द्र के प्रति हृदय में स्नेह उमड़ना भक्तिभावना है। जब वह भक्ति की भावना हृदय में न समाये तो वाणी में फूट पड़े, इसमें दोष नहीं है; किन्तु गुणों को जाने-पहचाने ही नहीं, केवल देखादेखी कर्णेन्द्रिय के विषय के वशीभूत हो राग अलापता रहे - वह कोई भक्ति नहीं है।" अर्ककीर्ति ने निवेदन किया - “प्रभो! युक्ति सहित भक्ति और युक्ति रहित भक्ति का स्वरूप स्पष्ट करें, ताकि हम युक्ति सहित सच्ची भक्ति में प्रवृत्त हो सकें।" दिव्यध्वनि में आया - "वह भक्ति दो प्रकार की है - भेदभक्ति और अभेदभक्ति। इन दोनों भक्तियों के रहस्य को नीचे लिखे अनुसार जानकर भक्ति करें तो वह युक्ति सहित भक्ति है और ऐसी भक्ति से मुक्ति होती है। भेदभक्ति का स्वरूप - अरहंत व सिद्धों के गुणों की महिमा में मन मयूर नाचने लगना, अष्टद्रव्य से भक्तिभाव पूर्वक वचनोच्चारण के साथ स्तुति-पूजा करना नृत्य-गान के साथ उत्साह प्रगट करना भेदभक्ति है। अभेदभक्ति का स्वरूप - समवसरण में अरहंत रहते हैं और लोकान्त में सिद्ध रहते हैं; अरहंतों-सिद्धों का स्वरूप जानकर अपनी आत्मा में अरहंत व सिद्धों को स्थापित कर भावपूजा करना तथा अपने आत्मा को उस जैसा ही अनुभव करना, उन जैसी वीतरागता, सर्वज्ञता, अपने आत्मा में प्रगट होने की भावना भाना | युक्तिसहित अभेदभक्ति है।
SR No.008374
Book TitleSalaka Purush Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2004
Total Pages278
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size765 KB
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