________________
ला
ब अजब ही च
का
१
छह द्रव्य / छह काल/विश्वव्यवस्था एवं कुलकर
आदिपुराण के कर्ता आचार्य जिनसेन ने श्री गौतम गणधर के मुख से राजा श्रेणिक को सर्वप्रथम निमित्त बनाकर हमें पंचास्तिकाय एवं कालद्रव्य - इन छह द्रव्यों का स्वरूप समझाया है।
लौकिक जन कालद्रव्य के अस्तित्व एवं उसके द्रव्यत्व में आशंका करते हैं; अतः सर्वप्रथम कालद्रव्य का स्वरूप समझाते हुए कहा है कि “जो द्रव्यों की पर्यायें बदलने में निमित्त हो उसे वर्तना या कालद्रव्य कहते हैं । यह कालद्रव्य अनादि-अनन्त है, वर्तना ही इसका लक्षण है। यह कालद्रव्य सूक्ष्म परमाणु बराबर है । संख्या की अपेक्षा असंख्यात है और लोकाकाश में रत्नों की राशि के समान लोकाकाश के प्रत्येक | प्रदेश पर स्थित है । यह असंख्यात होकर भी अनन्त पदार्थों के परिणमन में निमित्त होने से लोकाकाश की सामर्थ्य वाला है ।
छ
hep me to to 18 18 1
द्र
व्य
छ
ह
का
ल
यद्यपि लोक के प्रत्येक पदार्थ अपने-अपने गुण-पर्यायों द्वारा अपनी तत्समय की योग्यता से स्वयमेव ही परिणमन को प्राप्त होते रहते हैं । कालद्रव्य तो उनके उस परिणमन में मात्र सहचारी - निमित्त होता है । | इससे सिद्ध होता है कि सब पदार्थों का परिणमन, स्वतंत्रपने अपने-अपने गुण-पर्यायोंरूप होता है, वे सब पृथक्-पृथक् रहते हैं, अपना स्वरूप छोड़कर परस्पर एक-दूसरे से मिलते नहीं हैं । "
आगे पंचास्तिकाय को समझाते हुए कहा गया है कि - "धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य तथा जीव और पुद्गलद्रव्य - ये पाँचों द्रव्य पंचास्तिकाय कहलाते हैं; क्योंकि ये बहुप्रदेशी हैं । कालद्रव्य एक प्रदेश र है, अत: यद्यपि वह अस्तिकाय में नहीं आता; किन्तु वह भी द्रव्य है । संसार में जो घड़ी, घंटा, दिन, प्रहर आदि व्यवहारकाल के रूप में प्रसिद्ध है, घड़ी-घंटा आदि व्यवहारकाल कालद्रव्य की पर्यायें हैं।
सर्ग
ए
क