SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नत्रय विधान श्री रत्नत्रय मंडल विधान मंगलाचरण ( अनुष्टुप् ) मंगलं सिद्धपरमेष्ठी, मंगलं तीर्थंकरम् । मंगलं शुद्धचैतन्यं, आत्मधर्मोऽस्तु मंगलम् ।। १ ।। मंगलं दर्शनं ज्ञानं, चारित्रं रत्नत्रयम् । मंगलं कल्याणमस्तु, जिनविधान सुमंगलम् ।।२।। ( चामर ) वीतराग श्री जिनेन्द्र ज्ञानरूप मंगलम् । गणधरादि सर्वसाधु ध्यानरूप मंगलम् ।।३।। आत्मधर्म विश्वधर्म सार्वधर्म मंगलम् । वस्तु का स्वभाव ही अनाद्यनंत मंगलम् ॥४॥ शुद्ध रत्नत्रयी स्वभाव ही सुमंगलम् । पूर्ण दर्शन ज्ञान चारित्र मंगलम् ॥५॥ (दोहा) जयति पंचपरमेष्ठी, जिनप्रतिमा जिनधाम । जय जगदम्बे दिव्यध्वनि, श्री जिनधर्म प्रणाम ||६|| पीठिका (रोला ) सम्यग्दर्शन ज्ञान चरित्रमयी रत्नत्रय । यही मुक्ति सोपान तीन है पवित्र शिवमय ।।१ ॥ यही मुक्ति का मार्ग एक है भवदु:खहारी । यही भव्य जीवों को है उत्तम सुखकारी || २ ||
SR No.008373
Book TitleRatnatray mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2005
Total Pages73
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size280 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy