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________________ रक्षाबंधन रक्षाबंधन के सन्दर्भ में सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसके संबंध में जो कहानियाँ जैनों और हिन्दुओं में प्रचलित हैं, उनमें अद्भुत समानता देखने को मिलती है। हिन्दुओं में भी राजा बलि हैं, विष्णु भगवान हैं और विष्णु भगवान ने बलि का वध करने के लिए बावनिया का अवतार लिया था और जैनियों में भी मुनिराज विष्णुकुमार ने बावन अंगुल के बनकर बलि को काबू में किया था। ___ मैं यह नहीं कहना चाहता कि हमने उनकी नकल की है या उन्होंने हमारी नकल की है; क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि दोनों कहानियाँ मौलिक हों या दोनों ही काल्पनिक । पर यह परमसत्य है कि दोनों में अद्भुत समानता है। जो भी थोड़ा-बहुत अन्तर दिखाई देता है, वह अपनी-अपनी दार्शनिक मान्यताओं के कारण ही हुआ है। हमारा उद्देश्य दोनों की सत्यता-असत्यता पर विचार करना नहीं है। हमारे इस आलेख का मूल विषय तो जैनशास्त्रों में प्राप्त कहानी के आधार पर प्रचलित मान्यताओं की समीक्षा करना है। कहानी सुनाना भी मेरा उद्देश्य नहीं है । मैं ऐसा मानकर चलता हूँ कि मेरे सभी श्रोता और पाठक मूल कहानी से तो परिचित ही हैं; तथापि उस पर विचार करने के पूर्व उसका खाका खीचना तो आवश्यक है ही। सात सौ मुनिराजों का एक संघ था। उसके आचार्य थे अकम्पन । उनमें एक श्रुतसागर नाम के मुनिराज भी थे। जब संघ उज्जयनी नगरी में पहुँचा; तब वहाँ का श्रीवर्मा नामक राजा बलि, प्रह्लाद, नमुचि और बृहस्पति नामक मंत्रियों के साथ उनके दर्शनार्थ आया। अकम्पनाचार्य ने सभी को आदेश दे दिया था कि उनके आने पर सभी को मौन रखना है, अन्यथा वादविवाद हो सकता है, झगड़ा हो रक्षाबंधन सकता है। वे आये और दर्शन कर वापिस चले गये, आचार्यश्री के आदेश के अनुसार पूरा संघ ध्यान में मग्न रहा। जब वे लौटकर जा रहे थे, तब रास्ते में मुनिराजों से द्वेष रखनेवाला एक मंत्री कहने लगा - 'मौनम् मूर्खस्य भूषणम् - मूों का आभूषण मौन है।' ये लोग अपने अज्ञान को छुपाने के लिए ध्यान का ढोंग कर रहे हैं। अरे हम इन्हें नमस्कार कर रहे हैं और ये आशीर्वाद तक नहीं देते। ___मुनिराज श्रुतसागर सामने से आ रहे थे; उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं हुई। श्रुतसागर ने उनसे वादविवाद किया और उनके बाप-दादों की नहीं; उनके ही पूर्वभव की कहानी सुना दी। आखिरकार वे बहुत जलभुन गये और रात को आकर उन्होंने मुनिराज श्रुतसागर पर उपसर्ग किया तो देवताओं ने उन्हें कील दिया। उन मंत्रियों के इस व्यवहार के कारण उन्हें देशनिकाला दे दिया गया और वे हस्तिनापुर नगर में पद्मराय नामक राजा के यहाँ काम करने लगे। उन मुनिराजों का संघ भी कुछ दिनों बाद वहाँ पहुँचा । जब इस बात का पता उन मंत्रियों को चला तो उन्होंने बदला लेने का विचार किया। किसी काम के कारण राजा ने उन्हें कुछ वरदान माँग लेने का वचन दिया था, जिसका अभी तक उपयोग नहीं किया गया था । इस अवसर पर उन्होंने ७ दिन का राज्य माँग लिया। इसप्रकार बलि नामक मंत्री ७ दिन के लिए राजा बन गया। वह जानता था कि जैन साधु घास पर नहीं चलते; इसलिए उसने साधुसंघ को कैद करने के लिए जहाँ संघ ठहरा था, उसके चारों ओर गेहूँ बो दिये। उसके बाद धुआँ कराके उनपर उपसर्ग किया। ___ मुनिराज विष्णुकुमार ने उनका उपसर्ग दूर करने के लिए विक्रियाऋद्धि के बल से बावनिया का रूप धरकर बलि राजा से समस्त पृथ्वी ले ली। ___ इसप्रकार उनका उपसर्ग दूर हुआ। संक्षेप में रक्षाबंधन की कहानी इतनी ही है। (7)
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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