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________________ २० रक्षाबंधन और दीपावली केस आया था; पर तूने न्याय कहाँ किया ? मैंने उसमें लिखा कि "जो अपने अन्याय के लिए सारे जीवनभर पछताते रहे, हमने उसी कारण उन्हें सबसे महान न्यायाधीश मान लिया और अपने केस भी उनकी अदालत में सौपने को तैयार हैं। राम हमने तेरे भरोसे नैया छोड़ दी मझधार में। जैनी तो अपनी नैया पार्श्वनाथ के भरोसे छोड़ते हैं न ? सीता ने राम के भरोसे छोड़ी थी और हम पारसनाथ के भरोसे छोड़ते हैं । जो महापुरुष सारे जीवनभर अपनी जिस कमजोरी के कारण पश्चात्ताप करते रहे, हमने उसको उनकी क्वालिटी मान लिया । डिसक्वालिटी को क्वालिटी मान लिया । हमारी दृष्टि में क्वालिटी और डिसक्वालिटी का निर्णय नहीं है। कोई बड़ा आदमी आ जाता है तो हमारी परिभाषा बदल जाती है। हम निष्पक्ष होकर न्याय नहीं कर सकते। हम अपने चित्त में निर्णय नहीं कर सकते कि अच्छी चीज क्या है और बुरी चीज क्या है ? जो बुरा काम कोई बड़ा पुरुष कर ले, तो हम उस काम को अच्छा कहने लगते हैं। दृढ़ता से यह कहने की ताकत हम में नहीं है कि खोटा काम तो खोटा काम है, भले ही किसी ने भी किया हो । स्वयं विष्णुकुमार और श्रुतसागर दोनों ही जिस कार्य के लिए प्रायश्चित्त लेते हैं; हम उसी काम के लिए उनकी पूजा करते हैं । विष्णुकुमार ने दुबारा दीक्षा ली, तो उनके मुनिधर्म का मरण हो गया कि नहीं हो गया और श्रुतसागर तो मरण के लिए ही तैयार हो गये थे। उन्होंने स्वयं जिस अपराध को मौत की सजा के योग्य माना; उस अपराध को हम गुण मान रहे हैं और उसके उल्लेखपूर्वक उनकी पूजा कर रहे हैं। हमारे लिए अकम्पनाचार्य बेचारे हो गये, विष्णुकुमार और श्रुतसागर उनके रक्षक हो गये और वे उनसे रक्षित। इस पर भी हम ऐसा कहते फिर (13) रक्षाबंधन २१ रहे हैं कि जो स्वयं की भी रक्षा नहीं कर सके, वे हमारी रक्षा क्या करेंगे ? मैं आपसे ही पूछता हूँ कि जिसकी रक्षा की वह महान है या जिसने रक्षा की वह महान है ? मान लो पारसनाथ की रक्षा पद्मावती ने की। तो हम पूजा किसकी करें पद्मावती की या पार्श्वनाथ की ? पर अपन तो सचमुच ही पार्श्वनाथ को छोड़कर पद्मावती के पुजारी बन गये हैं। वहाँ विष्णुकुमार ने रक्षा की तो वे महान हो गये; यहाँ पद्मावती ने रक्षा की तो वे महान हो गईं। मन्दिर में ३ फुट की मूर्ति पद्मावती की और माथे पर २ इंच के पार्श्वनाथ। महिलाओं को उनसे सात हाथ दूर रहना चाहिए; पर हमने उन्हें माथे पर ही बैठा दिया। 'रक्षा का भाव भी बंधन का कारण है' - इसका नाम है रक्षाबंधन । मारने का भाव तो बंध का कारण है ही, लेकिन बचाने का भाव भी बंध का ही कारण है। मारने का भाव पापबंध का कारण है और बचाने का भाव पुण्यबंध का कारण है; लेकिन बंध के कारण तो दोनों ही हैं - बचाने का भाव भी और मारने का भाव भी । - 'रक्षा करने का भाव भी बंध का कारण है' यह कहानी में से ही निकल रहा है। मुनिराज विष्णुकुमारजी को रक्षा करने का भाव आया तो उन्हें पुण्यबंध भी अवश्य हुआ होगा; पर उससे ही उन्हें दीक्षा का छेद करना पड़ा । जो कर्म बंधे, वे तो बंधे ही; लेकिन सबसे पहिले रत्नत्रय की संपत्ति लुट गयी, गुणस्थान गिर गया। रक्षा करने का भाव भी मुनिराजों की रक्षा करने का भाव भी बंध का कारण है; जिसके कारण उन्हें मुनिपद छोड़ना पड़ा, प्रायश्चित्त लेना पड़ा । मुनिराज दीक्षा पुण्य बाँधने के लिए नहीं, कर्म काटने के लिए लेते हैं; बंधने के लिए नहीं, छूटने के लिए लेते हैं। - हमारे चित्त में कौन महान लगे इससे यह मालूम पड़ता है कि हमारी दृष्टि में महानता की परिभाषा क्या है ? कोई आकर कुछ भी करे, कितना भी उपसर्ग करे; तो भी अपने
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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