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________________ १८ रक्षाबंधन और दीपावली रक्षाबंधन उनकी दृष्टि में अपराध था, हमने उसको सबसे महान गुण मान लिया। यह बात मेरे दिमाग में अठारह वर्ष की उम्र से ही घूमती है। मैंने २०-२१ वर्ष की उम्र में एक ‘पश्चात्ताप' नामक खण्डकाव्य लिखा था। उसकी भूमिका में दो लाईनें लिखी थीं____ “जिस बड़ी गलती के लिए हमारे महापुरुष जीवनभर पश्चात्ताप करते रहे; आज हमने उनकी उस बड़ी गलती को ही उनका सबसे बड़ा गुण मान लिया है।" सीताजी की अग्निपरीक्षा हुई और रामचन्द्रजी उन्हें मनाने लगे कि सीते, तुम आओ, हम साथ में ही घर में रहेंगे; क्योंकि यह सिद्ध हो गया है कि तुम निर्दोष हो। इसके उत्तर में सीता ने कह दिया कि मैंने तो दुनिया देख ली है। अब मुझे इस दुनियाँ में रहने में कोई रस नहीं है। अब तो मैं दीक्षा लूँगी। राम पछताते रह गये, हाथ मलते रह गये। ये राम का पश्चात्ताप है। राम इस बात पर पश्चात्ताप कर रहे हैं कि इसमें सीता की क्या गलती है ? सीता नारी थी, मेरी ड्यूटी उसकी रक्षा करना था । वह अपने पति के साथ वन में गई थी। देवर भी साथ में थे और हम दोनों उसकी रक्षा नहीं कर पाए। इसमें उसकी क्या गलती थी? रावण हर ले गया, उसमें सीता की क्या गलती थी ? सीता रावण के साथ भागकर थोड़े ही गयी थी। वह वहाँ जितने दिन भी रही, उतने दिनों तक हम उसे छुड़ाकर नहीं ला पाये - यह किसकी गलती है - सीता की या मेरी? ___ जब राम उन्हें अपवित्र ही मान चुके थे, तो दुबारा जंगल में भेजने के लिए लाये ही क्यों ? जरा सी आलोचना के आधार पर पत्नी को छोड़ दिया । हमारी इजत में कोई धब्बा न लग जाए, बस इसलिए छोड़ दिया। यह जो अग्निपरीक्षा आज हो रही है, वह उस दिन भी हो सकती थी। उस दिन क्यों नहीं हुई ? इन सब गलतियों के लिए राम शेष सारे जीवनभर पछताते रहे। वे अपनी गलती पर पश्चात्ताप कर रहे हैं और उन्हीं के कारण हम ये मानते हैं कि वे कितने महान थे, पत्नी तक को त्याग दिया, इतने न्यायवान थे। उक्त खण्ड काव्य में अंत में एक बहुत मार्मिक बात लिखी है - प्रजा की सुनकर करुण पुकार, किया यदि रामचन्द्र ने न्याय । हुआ पर जनकसुता के साथ महा अन्याय महा अन्याय ।। रामचंद्र ने न्याय किया या अन्याय किया - मैं इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहता हूँ; लेकिन सोचने की बात यह है कि सीता के साथ न्याय हुआ या अन्याय ? सीता निर्दोष है या नहीं - यह पता नहीं लगा पाना - यह किसकी गलती है ? दण्ड देनेवाले की गलती है या सीता की गलती है ? सीता तो चिल्ला-चिल्लाकर कहती रही कि मैं निर्दोष हूँ। एक निरपराधी को दण्ड देना - क्या यह अन्याय नहीं है ? ____ तुम कहते हो रामचंद्रजी कितने बड़े न्यायवादी थे कि उन्होंने पत्नी को भी नहीं बक्शा। इतना महान न्यायाधीश बनने के चक्कर में जो अपराधी नहीं था, उसको दण्ड दे दिया। तो क्या निरपराधी को दण्ड देना न्याय है ? यह कौनसी डिक्शनरी में लिखा है कि निरपराधी को दण्ड देना न्याय है? चारों तरफ की दीवारों पर उन्हें यही लिखा दिखाई देता था कि सीतादेवी के साथ महाअन्याय हुआ, अन्याय हुआ, अन्याय हुआ। आकाश में से यही आवाज आती थी, जो कानों में गूंजती थी। जहाँ आँख उठाकर देखते थे, वहाँ यही दिखाई देता था। रामचंद्रजी सोचते हैं कि तू तो न्यायाधीश था, तेरी अदालत में (12)
SR No.008372
Book TitleRakshabandhan aur Deepavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size177 KB
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