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________________ - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - 1 यह नहीं माने जीव जो वे परसमय पहिचानिये ।।१८।। स्वभाव में थित द्रव्य सत् सत् द्रव्य का परिणाम जो। उत्पादव्ययध्रुवसहित है वह ही पदार्थस्वभाव है।।१९।। भंगबिन उत्पाद ना उत्पाद बिन ना भंग हो। उत्पादव्यय हो नहीं सकते एक ध्रौव्यपदार्थ बिन ।।१०।। पर्याय में उत्पादव्ययध्रुव द्रव्य में पर्यायें हैं। बस इसलिए तो कहा है कि वे सभी इक द्रव्य हैं।।१०१।। उत्पादव्ययथिति द्रव्य में समवेत हों प्रत्येक पल । बस इसलिए तो कहा है इन तीनमय हैं द्रव्य सब ।।१०२॥ उत्पन्न होती अन्य एवं नष्ट होती अन्य ही। _____(२४)___. सर्वथा जो अभाव है वह नहीं अतद्भाव है।।१०८।। परिणाम द्रव्य स्वभाव जो वह अपृथक् सत्ता से सदा। स्वभाव में थित द्रव्य सत् जिनदेव का उपदेश यह ।।१०९।। पर्याय या गुण द्रव्य के बिन कभी भी होते नहीं। द्रव्य ही है भाव इससे द्रव्य सत्ता है स्वयं ।।११०।। पूर्वोक्त द्रव्यस्वभाव में उत्पाद सत् नयद्रव्य से। पर्यायनय से असत् का उत्पाद होता है सदा ।।१११।। परिणमित जिय नर देव हो या अन्य हो पर कभी भी। द्रव्यत्व को छोड़े नहीं तो अन्य होवे किसतरह ।।११२।। मनुज देव नहीं है अथवा देव मनुजादिक नहीं। ________(२६)______ पर्याय किन्तु द्रव्य ना उत्पन्न हो ना नष्ट हो ।।१०३।। गुण से गुणान्तर परिणमें द्रव्य स्वयं सत्ता अपेक्षा। इसलिए गुणपर्याय ही हैं द्रव्य जिनवर ने कहा ।।१०४।। यदि द्रव्य न हो स्वयं सत् तो असत् होगा नियम से। किम होय सत्ता से पृथक् जब द्रव्य सत्ता है स्वयं ।।१०५।। जिनवीर के उपदेश में पृथक्त्व भिन्नप्रदेशता। अतद्भाव ही अन्यत्व है तो अतत् कैसे एक हों ।।१०६।। सत् द्रव्य सत् गुण और सत् पर्याय सत् विस्तार है। तदरूपता का अभाव ही तद्-अभाव अर अतद्भाव है।।१०७।। द्रव्य वह गुण नहीं अर गुण द्रव्य ना अतद्भाव यह । ऐसी अवस्था में कहो कि अनन्य होवे किसतरह ।।११३।। द्रव्य से है अनन्य जिय पर्याय से अन-अन्य है। पर्याय तन्मय द्रव्य से तत्समय अत: अनन्य है ।।११४।। अपेक्षा से द्रव्य 'है' 'है नहीं' 'अनिर्वचनीय है'। 'है है नहीं इसतरह ही अवशेष तीनों भंग हैं।।११५।। पर्याय शाश्वत नहीं परन्तु है विभावस्वभाव तो। है अफल परमधरम परन्तु क्रिया अफल नहीं कही ।।११६।। नाम नामक कर्म जिय का पराभव कर जीव को। नर नारकी तिर्यंच सुर पर्याय में दाखिल करे ।।११७।। नाम नामक कर्म से पशु नरक सुर नर गति में। ____(२७) ___ - - - - - - -
SR No.008371
Book TitlePravachansara Padyanuwada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2005
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size160 KB
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