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________________ प्रवचनसार अनुशीलन प्रवचनसार अनुशीलन मंगलाचरण (अडिल्ल) ज्ञान-ज्ञेयमय निज आतम आराध्य है। ज्ञान-ज्ञेयमय आतम ही प्रतिपाद्य है। ज्ञान-ज्ञेयमय एक आतमा सार है। जिनप्रवचन का सारहि प्रवचनसार है।।१।। लोकालोक प्रकाशित जिनके ज्ञान में। किन्तु आतमा एक है जिनके ध्यान में ।। भव्यजनों को जिनका एक अधार है। जिनकी ध्वनि का सार ये प्रवचनसार है ।।२।। उनके वचनों में ही निशदिन जो रमें। उनके ही वचनों का प्रतिपादन करें। कुन्दकुन्द से उन गुरुओं को धन्य है। ___ उनके सदृश जग में कोई न अन्य है ।।३।। उन्हें नमन कर उनकी वाणी में रमूं। जिसमें वे हैं जमे उसी में मैं जमूं।। उनके ही पदचिह्नों पर अब मैं चलूँ। उनकी ही वाणी का अनुशीलन करूँ॥४॥ मेरा यह उपयोग इसी में नित रहे। मेरा यह उपयोग सतत् निर्मल रहे। यही कामना जग समझे निजतत्त्व को। यही भावना परमविशुद्धि प्राप्त हो ।।५।।
SR No.008368
Book TitlePravachansara Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherRavindra Patni Family Charitable Trust Mumbai
Publication Year2005
Total Pages227
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size726 KB
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