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प्रवचनसार
तत्तुद्रव्यनयेन पटमात्रवच्चिन्मात्रम्।।१।। पर्यायनयेन तन्तुमात्रवद्दर्शनज्ञानादिमात्रम् ।।२।।
अनन्तगुणों का अखण्ड पिण्ड भगवान आत्मा भी एक द्रव्य है, एक वस्तु है; अत: उसमें भी परस्पर विरुद्ध प्रतीत होनेवाले धर्मयुगल पाये जाते हैं।
भगवान आत्मा में विद्यमान अनंतधर्मों में से एक-एक धर्म को विषय बनानेवाले सम्यक् श्रुतज्ञान के अंशरूप नय भी अनन्त होते हैं, हो सकते हैं। उन अनन्तनयों के समुदायरूप सम्यक्श्रुतज्ञान प्रमाण है और अनन्तधर्मात्मक भगवान आत्मा प्रमेय है।
निज भगवान आत्मा का गहराई से परिचय प्राप्त करने के लिए सम्यक्श्रुतज्ञान के अंशरूप ४७ नयों द्वारा यहाँ भगवान आत्मा के ४७ धर्मों का प्रतिपादन किया जा रहा है; क्योंकि न तो भगवान आत्मा के अनंतधर्मों का प्रतिपादन ही संभव है और न उन्हें जाननेवाले अनन्तनयों को भी वाणी द्वारा व्यक्त किया जा सकता है।
इन ४७ नयों द्वारा भगवान आत्मा के ४७ धर्मों के सम्यकपरिज्ञान से भगवान आत्मा के शेष अनंतधर्मों का भी अनुमान किया जा सकता है और सम्यक्श्रुतज्ञान के अंशरूप अनंतनयों का भी अनुमान लगाया जा सकता है, सबसे बड़ी बात तो यह है कि सम्यक्श्रुतज्ञान द्वारा अनन्त धर्मात्मक एक धर्मी आत्मा का अनुभव भी किया जा सकता है।
इसी भावना से आचार्य अमृतचन्द्र ने इन ४७ नयों का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया है; जो इसप्रकार है
“वह अनन्तधर्मात्मक आत्मद्रव्य द्रव्यनय से पटमात्र की भाँति चिन्मात्र है और पर्यायनय से तन्तुमात्र की भाँति दर्शन-ज्ञानादिमात्र है।।१-२॥"
यद्यपि वस्त्र में अनेक ताने-बाने होते हैं, विविध आकार-प्रकार होते हैं, विविध रंगरूप भी होते हैं, तथापि सब-कुछ मिलाकर वह वस्त्र वस्त्रमात्र ही है। ताने-बाने आदि भेदप्रभेदों में न जाकर उसे मात्र वस्त्र के रूप में ही देखना-जानना द्रव्यनय है; अथवा द्रव्यनय से वह वस्त्रमात्र ही है। ठीक इसीप्रकार चेतनास्वरूप भगवान आत्मा में ज्ञान-दर्शनरूप गुणपर्यायें भी हैं, तथापि गुणपर्यायरूप भेदों की दृष्टि में न लेकर भगवान आत्मा को एक चैतन्यमात्र जानना द्रव्यनय है; अथवा द्रव्यनय से भगवान आत्मा चिन्मात्र है।
इसीप्रकार यद्यपि वस्त्र वस्त्रमात्र ही है, तथापि उसमें ताने-बाने, आकार-प्रकार एवं रंग-रूप आदि भी तो हैं ही। वस्त्र को वस्त्रमात्र न देखकर उसमें विद्यमान ताने-बाने आदि पर दृष्टि डालकर देखने पर वह ताने-बानेवाला, लाल-पीला एवं छोटा-बड़ा भी तो दिखाई