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चरणानुयोगसूचकचूलिका : मोक्षमार्गप्रज्ञापनाधिकार
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ऐसा मोक्षमार्ग है - ऐसा जानना चाहिए। वह श्रामण्यरूप मोक्षमार्ग भेदात्मक होने से 'सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र मोक्षमार्ग है' - इसप्रकार पर्याय प्रधान व्यवहारनय से उसका प्रज्ञापन है और वह मोक्षमार्ग अभेदात्मक होने से 'एकाग्रता मोक्षमार्ग है' - इसप्रकार द्रव्यप्रधान
निश्चयनय मोक्षमार्ग इत्यभेदात्मकत्वात् द्रव्यप्रधानेन निश्चयनयेन, विश्वस्यापि भेदाभेदात्मकत्वात्तदुभयमिति प्रमाणेन प्रज्ञप्तिः ।।२४२।।
__( शार्दूलविक्रीडित ) इत्येवं प्रतिपत्तुराशयवशादेकोऽप्यनेकीभवंस्पैलक्षण्यमथैकतामुपगतो मार्गोऽपवर्गस्य यः। द्रष्टुज्ञातृनिबद्धवृत्तिमचलं लोकस्तमास्कन्दता
मास्कन्दत्यचिराद्विकाशमतुलं येनोल्लसन्त्याश्चितेः।।१६।। उसका प्रज्ञापन है तथा समस्त पदार्थ भेदाभेदात्मक होने से सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र और एकाग्रता- दोनोंमोक्षमार्ग हैं - इसप्रकार प्रमाण से उसका प्रज्ञापन है।"
इसप्रकार इस गाथा में यह कहा गया है कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की एकरूपता सच्चा मुनिधर्म है, मुनिपना है। श्रद्धा गुण की सम्यग्दर्शन पर्याय, ज्ञान और ज्ञेयतत्त्व की यथार्थ प्रतीतिरूप है; ज्ञानगुण की सम्यग्ज्ञान पर्याय, यथार्थ अनुभूतिरूप है और चारित्र गुण की सम्यक्चारित्ररूप पर्याय, क्रियान्तर से निवृत्ति पूर्वक होनेवाली परिणतिरूप है। इन तीनों की एकता ही मुक्तिमार्ग है।।२४२ ।।
इस गाथा के बाद की तत्त्वप्रदीपिका टीका में आचार्य अमृतचन्द्र एक छन्द लिखते हैं; जिसका पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(मनहरण कवित्त) इसप्रकार जो प्रतिपादन के अनुसार।
एक होकर भी अनेक रूप होता है। निश्चयनय से तो मात्र एकाग्रता ही।
पर व्यवहार से तीनरूप होता है। ऐसे मोक्षमार्ग के अचलालम्बन से।
ज्ञाता-दृष्टाभाव को निज में ही बाँध ले।। उल्लसित चेतना का अतुल विलास लख ।
आत्मीकसुख प्राप्त करे अल्पकाल में ||१६|| इसप्रकार प्रतिपादक के अभिप्रायानुसार एक होने पर भी अनेक होता हुआएक लक्षणपने