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चरणानुयोगसूचकचूलिका : आचरणप्रज्ञापनाधिकार
२२९वीं गाथा में युक्ताहार की विशेषताएं बताई गई थीं और अब इस गाथा में उत्सर्ग और अपवादमार्ग की मैत्री दिखाते हैं। गाथा का पद्यानुवाद इसप्रकार है -
(हरिगीत) मूल का न छेद हो इस तरह अपने योग्य ही।
वृद्ध बालक श्रान्त रोगी आचरण धारण करें।।२३०|| बाल, वृद्ध, श्रान्त (थके हुए) अथवा ग्लान - रोगी श्रमण, मूल का छेद जैसे न हो, उसप्रकार अपने योग्य आचरण करें।
अमृतचन्द्राचार्य तत्त्वप्रदीपिका टीका में इस गाथा के भाव को इसप्रकार स्पष्ट करते हैं
"बाल, वृद्ध, श्रान्त (थके हुए) और रोगी श्रमणों के द्वारा भी, शुद्धात्मतत्त्व के मूल संयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमेवाचरणमाचरणीयमित्युत्सर्गः। बालवृद्धश्रान्तग्लानेन शरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनभूतसंयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदोन यथास्यात्तथाबालवृद्धश्रान्तग्लानस्य स्वस्य योग्यं मृद्वेवाचरणमाचरणीयमित्यपवादः। ___ बालवृद्धश्रान्तग्लानेन संयमस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदोन यथा स्यात्तथा संयतस्य स्वस्ययोग्यमतिकर्कशमाचरणमाचरताशरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनभूतसंयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदोन यथास्यात्तथा बालवृद्धश्रान्तग्लानस्य स्वस्य योग्यं मृद्वप्याचरणमाचरणीयमित्यपवादसापेक्ष उत्सर्गः। ___ बालवृद्धश्रान्तग्लानेन शरीरस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनभूतसंयमसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदो न यथा स्यात्तथा बालवृद्धश्रान्तग्लानस्य स्वस्य योग्यं मृदाचरणमाचरता संयमस्य शुद्धात्मतत्त्वसाधनत्वेन मूलभूतस्य छेदोन यथास्यात्तथासंयतस्य स्वस्य योग्यमतिकर्कशमप्याचरणमाचरणीयमित्युत्सर्गसापेक्षोऽपवादः । ___ अतःसर्वथोत्सर्गापवादमैत्र्या सौस्थित्यमाचरणस्य विधेयम् ।।२३०॥ साधक संयम का छेद जिसप्रकार न हो, उसप्रकार अपने योग्य अति कठोर आचरण किया जाना ही उत्सर्गमार्ग है। इसीप्रकार बाल, वृद्ध, श्रान्त और रोगीश्रमणों के द्वारा शुद्धात्मतत्त्व के साधनभूत संयम का मूलभूत साधन होने से शरीर का छेद जिसप्रकार न हो, उसप्रकार अपने योग्य मृदु आचरण किया जाना ही अपवाद मार्ग है।
बाल, वृद्ध, श्रान्त और रोगी श्रमणों द्वारा शुद्धात्मतत्त्व के मूल साधक संयम का छेद जिसप्रकार न हो, उसप्रकार अपने योग्य अति कठोर आचरण करते हुए भी शुद्धात्मतत्त्व के साधनभूत संयम का मूलभूत साधन होने से शरीर का छेद जिसप्रकार न हो, उसप्रकार अपने योग्य मृदु आचरण किया जाना अपवाद सापेक्ष उत्सर्गमार्ग है।