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चरणानुयोगसूचकचूलिका : आचरणप्रज्ञापनाधिकार
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“दिन में एक बार आहार ही युक्ताहार है; क्योंकि उतने से ही श्रामण्यपर्याय का सहकारीकारणरूप शरीर टिका रहता है। एक से अधिक बार आहार लेना युक्ताहार नहीं है; क्योंकि शरीर के अनुराग से ही अनेक बार आहार लिया जाता है; इसलिए वह आहार अत्यन्त हिंसायतन (हिंसा का आयतन - घर) होने से योग्य नहीं है, युक्ताहार नहीं है तथा अनेक बार आहार लेनेवाला साधु शरीरानुराग से सेवन करनेवाला होने से योगी (युक्ताहार का सेवन करनेवाला) नहीं है।
अपूर्णोदर (ऊनोदर-अधपेट) आहार ही युक्ताहार है; क्योंकि वह योग का घातक नहीं है। पूर्णोदर आहार (भरपेट भोजन) प्रतिहत योगवाला होने से कथंचित् हिंसायतन होता हुआ युक्ताहार नहीं है और पूर्णोदर आहार करनेवाला प्रतिहत योगवाला होने से योगी (युक्ताहार का सेवन करनेवाला) नहीं है। लक्षणानुरागसेवकत्वेन न च युक्तस्य । भिक्षाचरणेनैवाहारोयुक्ताहारः, तस्यैवारम्भशून्यत्वात्। अभैक्षाचरणेन त्वारम्भसंभवात्प्रसिद्धहिंसायतनत्वेन न युक्तः, एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य।
दिवस एवाहारोयुक्ताहारः, तदेव सम्यगवलोकनात् । अदिवसेतु सम्यगलोकनाभावादनिवार्यहिंसायतनत्वेन न युक्तः, एवंविधाहारसेवनव्यक्तान्तरशुद्धित्वान्न च युक्तस्य ।
__ अरसापेक्ष एवाहारोयुक्ताहारः, तस्यैवान्तःशुद्धिसुन्दरत्वात्। रसापेक्षस्तु अन्तरशुद्धया प्रसह्य हिंसायतनीक्रियमाणोन युक्तः, अन्तरशुद्धिसेवकत्वेन न च युक्तस्य।
अमधुमांस एवाहारो युक्ताहारः, तस्यैवाहिंसायतनत्वात् । समधुमांसस्तु हिंसायतनत्वान्न
यथालब्ध (जैसा मिल गया, वैसा) आहार ही युक्ताहार है; क्योंकि वही आहार विशेषप्रियतारूप अनुराग से रहित है। अयथालब्ध (अपनी पसन्द का प्रयत्नपूर्वक प्राप्त) आहार तो विशेषप्रियतारूप अनरागसेसेवन किया जाता है। इसलिए अत्यन्त हिंसायतनरूपहोने से युक्ताहार नहीं है और अयथालब्ध आहार लेनेवाला विशेषप्रियता रूप अनुराग से सेवन करनेवाला होने से युक्ताहारीयोगी नहीं है।
भिक्षाचरण से यथालब्ध आहार ही युक्ताहार है, क्योंकि वही आरंभशून्य है। अभिक्षाचरण से प्राप्त आहार में आरंभ होता ही है; इसलिए हिंसायतन है; अत: वह आहार युक्ताहार नहीं है। ऐसे आहार के सेवन में अंतरंग अशुद्धि प्रगट ही है; इसलिए वह आहार करनेवाला साधु युक्ताहारी योगी नहीं है।
दिन का आहार ही युक्ताहार है; क्योंकि दिन में ही ठीक से देखा जा सकता है। रात्रि में कोई वस्तु ठीक से दिखाई नहीं देती; इसलिए रात्रि का भोजन हिंसायतन होने से युक्ताहार नहीं