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चरणानुयोगसूचकचूलिका : आचरणप्रज्ञापनाधिकार
जन्म के समय के रूप जैसे रूपवाला, शुद्ध, हिंसादि से रहित और शारीरिक शृंगार से रहित होता है ।
आत्मनो हि तावदात्मना यथोदितक्रमेण यथाजातरूपधरस्य जातस्यायथाजातरूपधरत्वप्रत्ययानां मोहरागद्वेषादिभावानां भवत्येवाभाव:, तदभावात्तु तद्भावभाविनो निवसनभूषणधारणस्य मूर्धजव्यञ्जनपालनस्य सकिंचनत्वस्य सावद्ययोगयुक्तत्वस्य शरीरसंस्कारकरणत्वस्य चाभावाद्यथाजातरूपत्वमुत्पाटितकेशश्मश्रुत्वं शुद्धत्वं हिंसादिरहितत्वमप्रतिकर्मत्वं च भवत्येव, तदेतद्बहिरंगं लिंगम् ।
तथात्मनोयथाजातरूपधरत्वापसारिता यथाजातरूपधरत्वप्रत्ययमोहरागद्वेषादिभावानामभावादेव तद्भावभाविनो ममत्वकर्मप्रक्रमपरिणामस्य शुभाशुभोपरक्तोपयोगतत्पूर्वकतथाविधयोगाशुद्धियुक्तत्वस्य परद्रव्यसापेक्षत्वस्य चाभावान्मूर्च्छारम्भवियुक्तत्वमुपयोगयोगशुद्धियुक्तत्वमपरापेक्षत्वं च भवत्येव, तदेतदन्तरंग लिंगम् ।। २०५ - २०६ ।।
मूर्च्छा और आरंभ से रहित, उपयोग और योग की शुद्धि से सहित, पर की अपेक्षा रहित - ऐसा जिनेन्द्रदेव कथित अंतरंग लिंग (भावलिंग) मोक्ष का कारण है।
आ. अमृतचन्द्र तत्त्वप्रदीपिका टीका में इन गाथाओं का भाव इसप्रकार स्पष्ट करते हैं -
"यथोक्त क्रम से जो स्वयं यथाजातरूपधर हुए हैं; उनके अयथाजातरूपधरपने के कारणभूत मोह - राग-द्वेषादि भावों का अभाव होता ही है और उनके अभाव के कारण; जो कि उनके सद्भाव में होते थे - ऐसे १. वस्त्राभूषण का धारण, २. सिर और दाढ़ी-मूछों के बालों कारक्षण, ३. परिग्रह का होना, ४. सावद्य योग से युक्त होना और ५. शारीरिक संस्कार (शृंगार) का करना - इन पाँचों का अभाव भी होता ही है ।
इसकारण १. जन्म के समय जैसा नग्नरूप, २. सिर और दाढ़ी-मूछ के बालों का लुंचन, ३. शुद्धत्व (अपरिग्रहरूप दशा), ४. हिंसादि पापों से रहितपना और ५. शारीरिक शृंगार का अभाव भी होता ही है; इसलिए यह बहिर्लिंग है ।
आत्मा यथाजातरूपधरपने से दूर किये गये अयथाजातरूपधरपने के कारणभूत मोहराग-द्वेषादि भावों का अभाव होने से, जो उनके सद्भाव में होते थे - ऐसे १. ममत्व और कार्य की जिम्मेदारी लेने के परिणाम, २. शुभाशुभ से उपरक्त उपयोग और तत्पूर्वक तथाविध योग की अशुद्धि से युक्तता तथा ३. परद्रव्य से सापेक्षता - इन तीनों का अभाव होता है; इसलिए उस आत्मा के १. मूर्च्छा और आरंभ से रहितता, २. उपयोग और योग की शुद्धता और ३. पर की अपेक्षा से रहितता होती ही है; इसलिए यह अंतरंग लिंग है । "