________________
४०२
प्रवचनसार
द्रव्यलिंग और भावलिंग के संबंध में हमारी बहुत गलत धारणाएँ हैं। 'द्रव्यलिंग' शब्द सुनते ही हमें ऐसा लगने लगता है जैसे मुँह में कड़वाहट-सी आ गई हो। द्रव्यलिंग हमें बिल्कुल हेय लगता है और भावलिंग साक्षात् मोक्षस्वरूप ही प्रतीत होता है; लेकिन हमें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति द्रव्यलिंग और भावलिंग- दोनों के बिना मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर सकता। सिद्धचक्रमहामण्डलविधान की जयमाला में कहा है -
भावलिंग बिन कर्म खिपाई, द्रव्यलिंग बिन शिवपद जाई।
यो अयोग कारज नहीं होई, तुमगुण कथन कठिन है सोई।। हे भगवन् ! द्रव्यलिंग के बिना कोई मोक्ष चला जाय और भावलिंग के बिना कर्मों का नाश हो जाय - जिसप्रकार यह असंभव है; उसीप्रकार तुम्हारे गुणों का कथन करना भी कठिन है। जब मोक्ष के लिए दोनों ही लिंग अनिवार्य हैं, तब एक बुरा और दूसरा अच्छा – यह कैसे हो सकता है ?
यदि कोई कहे कि शास्त्रों में तो द्रव्यलिंगी मुनियों की बहुत निंदा की गई है।
अरे भाई! जहाँ द्रव्यलिंगी मुनियों की निंदा की बात आती है, वह भावलिंग के बिना जो द्रव्यलिंग है, उसकी निंदा है; भावलिंग के साथ जो द्रव्यलिंग है, उसकी नहीं। वस्तुत: द्रव्यलिंग और भावलिंग तो साथ-साथ ही होते हैं।
यहाँ यह प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि जिसप्रकार भावलिंग के बिना होनेवाले द्रव्यलिंग की निंदा होती है; उसीप्रकार द्रव्यलिंग के बिना भावलिंग की भी निंदा होनी चाहिए; परन्तु ऐसा नहीं होता।
इसका उत्तर यह है कि द्रव्यलिंग के बिना भावलिंग होता ही नहीं है; पर द्रव्यलिंग भावलिंग के बिना हो जाता है। जब हम किसी को भावलिंगी कहते हैं, तब उसका अर्थ यह होता है कि वह भावलिंगी तो है ही, द्रव्यलिंगी भी है। यही कारण है कि शास्त्रों में भावलिंग की निंदा नहीं है। ___ इस संबंध में दूसरा विवेचनीय बिन्दु यह है कि द्रव्यलिंग बाह्यक्रिया का नाम है और श्रामण्य के लिए उसका होना भी अनिवार्य है। शरीर की नग्नता आदि क्रिया संबंधी भाव, शुभभाव हैं और भावलिंग शुद्धोपयोगरूप है, शुद्धपरिणतिरूप है। यद्यपि द्रव्यलिंग के बिना मोक्ष नहीं होता, तथापि द्रव्यलिंग से भी मोक्ष नहीं होता; क्योंकि द्रव्यलिंग तो जड़ की क्रिया