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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : ज्ञानज्ञेयविभागाधिकार
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उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि प्रत्येक पदार्थ स्वयं के परिणमन का कर्ता स्वयं है। कर्ता के संबंध में कहा गया है कि स्वतंत्र: कर्ता' । जो अपने कार्य को स्वतंत्ररूप से करे, उसे कर्ता कहते हैं। जीव द्रव्य अपने निर्मल परिणामों को स्वतंत्रपने करता है; इसलिए वह उनका कर्ता तो है ही; किन्तु अज्ञानावस्था में विकारी परिणामों का कर्ता भी वही है। यद्यपि विकारी भावों में कर्मोदय निमित्त होता है; तथापि वह कर्मोदय तो मात्र निमित्त ही है, कर्ता नहीं। तात्पर्य यह है कि वास्तविक कर्ता तो उपादान ही होता है। कहा गया है कि यः परिणमति स कर्ताः' जो परिणमित होता है, वही कर्ता होता है।
इसप्रकार यह सुनिश्चित होता है कि ज्ञानी जीव ज्ञानभाव का कर्ता है और अज्ञानी जीव अज्ञानभाव का कर्ता है। इसे इसप्रकार भी कह सकते हैं कि यह जीव ज्ञानावस्था में ज्ञानभावों का और अज्ञानावस्था में अज्ञानभावों का कर्ता है। भावकर्म जीव के विकारी परिणाम हैं; अत: अज्ञानावस्था में वह उनका कर्ता है और द्रव्यकर्म पौद्गलिक कार्मणवर्गणाओं के कार्य हैं; अत: उनका कर्ता पुद्गल ही है, जीव नहीं। कहा भी है -
ग्यान-भाव ग्यानी करै, अग्यानी अग्यान।
दर्वकर्म पुद्गल करै, यह निहचै परवान ।। ज्ञानी ज्ञानभावों का व अज्ञानी अज्ञानभावों का कर्ता है और पौद्गलिक द्रव्यकर्मों का कर्ता पुद्गल है - यह निश्चयनय का कथन है।
यहाँ एक प्रश्न संभव है कि यदि रागादि भाव अज्ञानभाव हैं तो जो रागादि भाव ज्ञानी के पाये जाते हैं; उनका कर्ता कौन है ?
मिथ्यात्व के साथ रहनेवाले अनन्तानुबंधी संबंधी रागादि का नाम ही अज्ञानभाव है। ऐसा अज्ञानभाव ज्ञानियों के होता ही नहीं है। ऐसा अज्ञानभाव तो अज्ञानियों के ही होता है; अत: अज्ञानी ही उन अज्ञानभावरूप रागादिभावों के कर्ता हैं।
ज्ञानी के होनेवाले अप्रत्याख्यानावरणादि संबंधी रागादि भावों का ज्ञानी कर्ता नहीं; अपितु ज्ञाता ही है; क्योंकि वह उन्हें जानता तो है, पर उनका कर्ता नहीं बनता। अत: वह उन्हें जाननेरूप क्रिया का कर्ता तो है, पर उन रागादि भावों का कर्ता नहीं। पर का कर्ता तो ज्ञानी और अज्ञानी - दोनों ही नहीं हैं।
प्रवचनसार परिशिष्ट में ४७ नयों के प्रकरण में आत्मा को कर्तानय से अप्रत्याख्यानावरणादि रागादि भावों का कर्ता कहा है; पर साथ में वही जीव उसी समय अकर्तानय से उक्त रागादि का अकर्ता भी है - यह भी कहा है।
विभिन्न स्थानों पर विभिन्न अपेक्षाओं से कथन किया जाता है। अत: कहाँ किस अपेक्षा