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प्रवचनसार
जाने (जानने में आने) की आवश्यकता नहीं है।
उक्त सम्पूर्ण कथन का सार यह है कि यह भगवान आत्मा औदारिक आदि शरीर रूप पुद्गलों से तो भिन्न है ही; किन्तु अचेतन आकाश, काल और धर्म व अधर्म - इन अरूपी द्रव्यों से भी पृथक् है; यहाँ तक कि अन्य जीवों से भी भिन्न ही है।
परद्रव्यों से आत्मा की भिन्नता का ज्ञान करानेवाली उक्त गाथा में अरसादि विशेषणों के माध्यम से पुद्गल से; चेतना गुण वाला विशेषण के माध्यम से आकाशादि अमूर्त अजीवद्रव्यों से और स्वयं की चेतना के माध्यम से अन्य जीवों से भिन्नता सिद्ध की गई है।
इस प्रवचनसार परमागम में १७२वीं गाथा के रूप में समागत इस गाथा की आचार्य अमृतचन्द्रकृत तत्त्वप्रदीपिका टीका में अलिंगग्रहण पद पर विशेष ध्यान दिया गया है। ___ यद्यपि सामान्यरूप से तो यही कहा गया है कि रूपरसादि चिन्हों के द्वारा ग्राह्य न होने से यह भगवान आत्मा अलिंगग्रहण है; तथापि यह प्रश्न उपस्थित कर कि यदि यही बात है तो फिर अलिंगग्रहण क्यों कहा, अलिंगग्राह्य ही कहना चाहिए था? इसके उत्तर में यह कहा गया है कि विशिष्ट अर्थों की निष्पत्ति के लिए अलिंगग्रहण पद का प्रयोग किया गया है।
इसके बाद अलिंगग्रहण पद के २० अर्थ किये गये हैं। 'लिंग' और 'ग्रहण' पदों के विभिन्न अर्थ होने से यह सब संभव हुआ है। अलिंगग्रहण के आरंभ का 'अ' तो सर्वत्र निषेधवाचक ही है।
सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह ज्ञेयाधिकार है और अपना भगवान आत्मा भी एक ज्ञेयपदार्थ है। अरसादि के समान उसका स्वभाव अलिंगग्रहण भी है। जिसप्रकार आत्मा को जानने के लिए उसके ज्ञानस्वभाव को जानना जरूरी है; उसीप्रकार उसके ज्ञेयस्वभाव को भी जानना आवश्यक है। उस भगवान आत्मा का ग्रहण (जानना) कैसे होता है - यह जानना भी आवश्यक है, अनिवार्य है। आत्मा का ग्रहण कैसे होता है' - यह जानने के साथसाथ कैसे नहीं होता है - यह जानना भी अति आवश्यक ही है। इस अलिंगग्रहण प्रकरण में भगवान आत्मा के इस ज्ञेयस्वभाव को ही समझाया गया है।
'अलिंगग्रहण' पद के बीस अर्थों का संक्षिप्त विवरण इसप्रकार है -
१. 'यह भगवान आत्मा अतीन्द्रिय ज्ञानमय हैं' - इस अर्थ की प्राप्ति करानेवाले प्रथम बोल में लिंग शब्द का अर्थ इन्द्रिय और ग्रहण शब्द का अर्थ जानना किया गया है।
इसप्रकार यह स्पष्ट हुआ कि यह ज्ञायक आत्मा इन्द्रियों के द्वारा नहीं जानता; इसलिए अलिंगग्रहण है, अतीन्द्रियज्ञानमय है।
२. 'यह भगवान आत्मा इन्द्रिय प्रत्यक्ष का विषय नहीं है' - इस अर्थ की प्राप्ति कराने