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ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन : ज्ञानज्ञेयविभागाधिकार
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___तो भूजलादि रूप हों वे स्वयं के परिणमन से||१६७|| दो अंशोंवाला स्निग्ध परमाणु चार अंशोंवाले स्निग्ध या रूक्ष परमाणु के साथ बंधता है अथवा तीन अंशोंवाला रूक्ष परमाणु पाँच अंशोंवाले के साथ युक्त होकर बंधता है।
दो से लेकर अनन्त प्रदेशवाले संस्थानों (आकारों) सहित सूक्ष्म और स्थूल स्कंध पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु रूप स्वयं के परिणामों से ही होते हैं।
इन गाथाओं का भाव तत्त्वप्रदीपिका टीका में आचार्य अमृतचन्द्र इसप्रकार स्पष्ट करते हैं“यथोक्त हेतुओं से परमाणुओं का पिण्डत्व निर्धारित करके यह जानना चाहिए कि दो उक्तं च
णिद्धा णिद्धेण बज्झंति सुक्खा मुक्खा य पोग्पाला। णिद्धलुक्खा य बज्झंति रूवारूवी य पोग्गला।। णिद्धस्स णिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्स लुक्खेण दुराहिएण।
णिद्धस्स लुक्खेण हवेदि बंधो जहण्णवजे विसमे समे वा।।१६६।। एवममी समुपजायमाना द्विप्रदेशादयः स्कन्धा विशिष्टावगाहनशक्तिवशादुपात्तसौम्यस्थौल्यविशेषा विशिष्टाकारधारणशक्तिवशाद्गृहीतविचित्रसंस्थाना: सन्तो यथास्वं स्पर्शादि-चतुष्कस्याविर्भावतिरोभावस्वशक्तिवशमासाद्य पृथिव्यप्तेजोवायवः स्वपरिणामैरेव जायन्ते। अतोऽवधार्यते द्वयणुकाद्यनन्तानन्तपुद्गलानांन पिण्डकर्ता पुरुषोऽस्ति ।।१६७।।
और चार गुणवाले तथा तीन और पाँच गुणवाले दो स्निग्ध परमाणुओं के अथवा दो रूक्ष परमाणुओं के अथवा दो स्निग्ध-रूक्ष परमाणुओं के अर्थात् एक स्निग्ध और एक रूक्ष परमाणु के परस्पर बंध होता है - यह प्रसिद्ध है। कहा भी है -
पुद्गल रूपी' और 'अरूपी' होते हैं। उनमें से स्निग्ध पुद्गल स्निग्ध के साथ बँधते हैं, रूक्ष पुद्गल रूक्ष के साथ बँधते हैं, स्निग्ध और रूक्ष भी बँधते हैं। जघन्य के अतिरिक्त सम अंशंवाला हो या विषम अंशवाला हो, स्निग्ध का दो अधिक अंशवाले स्निग्ध परमाणु के साथ, रूक्ष का दो अधिक अंशवाले रूक्ष परमाणु के साथ और स्निग्ध का (दो अधिक अंशवाले) रूक्ष परमाणु के साथ बंध होता है।
(किसी एक परमाणु की अपेक्षा से विसदृशजाति का समान अंशोंवाला दूसरा परमाणु 'रूपी' कहलाता है और शेष सब परमाणु उसकी अपेक्षा से 'अरूपी' कहलाते हैं। जैसे - पाँच अंश स्निग्धतावाले परमाणु को पाँच अंश रूक्षतावाला दूसरा परमाणु 'रूपी' है और शेष सब परमाणु उसके लिए ‘अरूपी' हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि - विसदृशजाति के समान