________________
२७४
प्रवचनसार
लिंगित होता है, पहिचाना जाता है; उन लिंगों को गुण कहते हैं। जो द्रव्य हैं, वे गुण नहीं हैं ___ अथ ते द्रव्यस्य जीवोऽयमजीवोऽयमित्यादिविशेषमुत्पादयन्ति, स्वयमपि तद्भावविशिष्टत्वेनोपात्त विशेषत्वात् । यतो हि यस्य यस्य द्रव्यस्य यो यः स्वभावस्तस्य तस्य तेन तेन विशिष्टत्वात्तेषामस्ति विशेषः।। __ अत एव च मूर्तानाममूर्तानां च द्रव्याणां मूर्तत्वेनामूर्तत्वेन च तद्भावेन विशिष्टत्वादिमे मूर्ता गुणा इमे अमूर्ता इति तेषां विशेषो निश्चयः ।।१३०।।
मूर्तानांगुणानामिन्द्रियग्राह्यत्वं लक्षणम् । अमूर्तानां तदेव विपर्यस्तम् । ते च मूर्ताः पुद्गलद्रव्यस्य, तस्यैवेकस्य मूर्तत्वात्। अमूर्ताः शेषद्रव्याणां पुद्गलादन्येषां सर्वेषामप्यमूर्तत्वात्॥१३१॥
और जो गुण हैं, वे द्रव्य नहीं हैं' - इस अपेक्षा से द्रव्य से अतद्भाव के द्वारा वे गुण विशिष्ट वर्तते हए: लिंग और लिंगी के रूप में प्रसिद्धि के समय द्रव्य के लिंगत्व को प्राप्त होते हैं।
वेलिंगयागुण द्रव्यों में ये जीव हैं और ये अजीव हैं' - ऐसाभेद उत्पन्न करते हैं; क्योंकि स्वयं ही तद्भाव के द्वारा विशिष्ट होने से विशेष को प्राप्त हैं। जिस-जिस द्रव्य का जो-जो स्वभाव हो, उस-उस द्रव्य का उस-उस गुण के द्वारा विशिष्टत्व होने से उनमें भेद है।।
इसलिए मूर्त या अमूर्त द्रव्यों का मूर्तत्व-अमूर्तत्वरूप तद्भाव के द्वारा विशिष्टत्व होने से उनमें इसप्रकार का भेद निश्चित करना चाहिए कि ये गुण मूर्त हैं और ये गुण अमूर्त हैं।
मूर्त गुणों का लक्षण इन्द्रियग्राह्यत्व है और अमूर्त गुणों का लक्षण उनसे विपरीत है अर्थात् अमूर्त गुण इन्द्रियों के माध्यम से ज्ञात नहीं होते।
ये मूर्त गुण पुद्गलद्रव्य के हैं; क्योंकि एक वही मूर्त है और अमूर्तगुण शेष द्रव्यों के हैं; क्योंकि पुद्गल के अतिरिक्त शेष सभी द्रव्य अमूर्त हैं।"
आचार्य जयसेन तात्पर्यवृत्ति टीका में इन गाथाओं के भाव को तत्त्वप्रदीपिका के समान ही स्पष्ट करते हैं; तथापि तद्भाव और अतद्भाव का स्वरूप स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि शुद्ध जीवद्रव्य में जो केवलज्ञानादि गुण हैं; उनका शुद्ध जीव के प्रदेशों के साथ जो एकत्व है, अभिन्नत्व है, तन्मयत्व है; वह तद्भाव कहलाता है। उन्हीं गुणों का उन प्रदेशों के साथ जब संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन आदि से भेद किया जाता है; तब वही अतद्भाव कहा जाता है।
तात्पर्य यह है कि द्रव्य और गुणों में अभिन्नप्रदेशत्व होने से तद्भाव है और संज्ञा, संख्या, लक्षणादि की अपेक्षा भेद होने से अतद्भाव है। इसप्रकार द्रव्य और गुणों के बीच तद्भाव भी है और अतद्भाव भी है।
यहाँ एक प्रश्न संभव है कि परमाणु तो इन्द्रियग्राह्य नहीं है, फिर उसे मूर्त कैसे माना जा