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________________ ज्ञेयतत्त्वप्रज्ञापन: द्रव्यविशेषप्रज्ञापन अधिकार अथ द्रव्यविशेषो गुणविशेषादिति प्रज्ञापयति । अथ मूर्तामूर्तगुणानां लक्षणसंबंधमाख्याति २७३ लिंगेहिं जेहिं दव्वं जीवमजीवं च हवदि विण्णादं । तेऽतभावविसिट्टा मुत्तामुत्ता गुणा णेया । । १३० ।। मुत्ता इंदियगेज्झा पोग्गलदव्वप्पगा अणेगविधा । व्वाणमुत्तणं गुणा अमुत्ता मुणेदव्वा ।। १३१ ।। लिङ्गैयैर्द्रव्यं जीवोऽजीवश्च भवति विज्ञातम् । तेऽतद्भावविशिष्टा मूर्तामूर्ता गुणा ज्ञेयाः ।। १३० ।। मूर्ता इन्द्रियग्राह्याः पुद्गलद्रव्यात्मका अनेकविधाः । द्रव्याणाममूर्तानां गुणा अमूर्ता ज्ञातव्याः ।। १३१ ।। द्रव्यमाश्रित्य परानाश्रयत्वेन वर्तमानैर्लिङ्गयते गम्यते द्रव्यमेतैरिति लिङ्गानि गुणाः । ते च यद्द्रव्यं भवति न तद्गुणा भवन्ति, ये गुणा भवन्ति ते न द्रव्यं भवतीति द्रव्यादतद्भावेन विशिष्टाः सन्तो लिङ्गलिङ्गिप्रसिद्धौ तल्लिङ्गत्वमुपढौकन्ते । विगत गाथाओं में द्रव्यों को जीव-अजीव, लोक- अलोक और क्रियावान-भाववान के रूप में प्रस्तुत किया गया है और अब आगामी दो गाथाओं में उन्हें गुणों की विशेषता से द्रव्यों में विशेषता होती है - यह बताते हुए छह द्रव्यों को मूर्त और अमूर्त के रूप में प्रस्तुत करते हैं । गाथाओं का पद्यानुवाद इसप्रकार है - - ( हरिगीत ) जिन चिह्नों से द्रव ज्ञात हों रे जीव और अजीव में। वे मूर्त और अमूर्त गुण हैं अतद्भावी द्रव्य से || १३० || इन्द्रियों से ग्राह्य बहुविधि मूर्त गुण पुद्गलमयी । अमूर्त हैं जो द्रव्य उनके गुण अमूर्त्तिक जानना ।। १३१ ॥ जिन लिंगों से द्रव्य जीव और अजीव के रूप में ज्ञात होते हैं; वे अतद्भाव विशिष्ट मूर्तअमूर्त गुण जानने चाहिए । जो इन्द्रियों से ग्रहण किये जाते हैं, ऐसे मूर्तगुण पुद्गलद्रव्यात्मक हैं और वे अनेक प्रकार के हैं और अमूर्त द्रव्यों के गुण अमूर्त जानना चाहिए । इन गाथाओं के भाव को आचार्य अमृतचन्द्र इसप्रकार स्पष्ट करते हैं "पर के आश्रय के बिना स्वद्रव्य का आश्रय लेकर प्रवर्तमान होने से जिनके द्वारा द्रव्य
SR No.008367
Book TitlePravachansara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2008
Total Pages585
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size3 MB
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